DAYA KRISHNA
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Link to a NEW ARCHIVE which consists of ALL the issues of the JICPR edited by D.P. Chattopadhyaya and Daya Krishna, from Vol. 1.1 (1983) to Vol. 23.2 (2006), including Author and Subject Index
Hindi - हिन्दी
Although daya krishna published mostly in english, he remained committed to the idea of plurilingual philosophy and critical of the domination of english in academic philosophy in india. he therefore continuously wrote books and articles in hindi, both as philosophical resources for students and also as research papers contributing to the philosophical activity in the hindi academic world..
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ज्ञान मीमांसा
Jaipur: Rājasthāna Hindī Graṃtha Akādamī, Jaipur, 1973.
भारतीय एवं पाश्चात्य दार्शनिक परंपराएं
Indian and Western Philosophical Traditions: Collected Essays by Daya Krishna in Hindi, edited by Yogesh Gupta, 2006.
भारतीय चिंतन परंपराएं : नए आयाम नई दिशाएँ
Three Lectures by Daya Krishna Delivered in 1997, edited by Krishna Dutt Paliwal, published by Sasta Sahitya Mandal, Delhi, 2013.
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GC Pande on Metaphysics; Respondents: Daya Krishna, Yashdev Shalya, RS Bhatnagar
From: In Defense of Metaphysics, edited by Ambika Datta Sharma and Sanjay Kumar Shukla, published by Vishvavidyalaya Prakashan, Sagar, 2008, pp 399-418
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Yashdev Shalya on the philosophy of Daya Krishna
from: Bhartiya Darshan ke 50 Varsh, edited by Ambika Datta Sharma, published by Vishvavidyalaya Prakashan, Sagar, 2006, pp. 181-202
Nāgarikī: Plātona kī Politīyā kā Hindī anuvadā
(Intro to the Hindi Translation of Plato's REPUBLIC)
R. S. Bhatnagar, (2014), Delhi: DK Printworld, pp. V - Xiii.
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- Interesting Facts /
Philosophy Facts in Hindi : जानें दर्शनशास्त्र से जुड़े महत्वपूर्ण तथ्य
- Updated on
- May 1, 2024
दर्शन एक विशेष प्रकार का ज्ञान है जो व्यक्ति की सोच और विचारों के आधार पर जीवन के महत्वपूर्ण प्रश्नों का अध्ययन करता है। यह विचार विज्ञान, नैतिकता, धर्म और अन्य विषयों पर विचार करता है। दर्शन विचारशीलता, तर्क और अभिप्रायों को समझने का अभ्यास है और मानवता के असली अर्थ को जानने का प्रयास करता है। इसका मुख्य उद्देश्य जीवन का मूल्यांकन करना है और सत्य की खोज करना है। इसलिए आज के इस ब्लॉग में हम आपको Philosophy Facts in Hindi के बारे में बताएँगे।
दर्शनशास्त्र के बारे में
दर्शनशास्त्र या फिलॉसफी मानव जीवन के बेसिक प्रश्न पर विचार करने और उनके विभिन्न पहलुओं को समझने का एक विज्ञान है। यह शब्द ‘दर्शन’ और ‘शास्त्र’ से मिलकर बना है, जिसका अर्थ है ‘ज्ञान की खोज’ या ‘सत्य की खोज का विज्ञान’। इसमें मानवता के विभिन्न पहलुओं जैसे कि नैतिकता, धर्म, ज्ञान, सत्य, विचार और विज्ञान पर विचार किया जाता है।
दर्शनशास्त्र का मुख्य उद्देश्य विचारों को समझने के माध्यम से मानव जीवन को अधिक समर्थ और संवेदनशील बनाना है। यह मानवता के सबसे महत्वपूर्ण प्रश्नों पर गहरी चिंतन करता है और जीवन के अर्थ और प्रयासों को समझने का प्रयास करता है।
Philosophy Facts in Hindi – दर्शनशास्त्र से जुड़े महत्वपूर्ण तथ्य
रिसर्च, स्टडी और रिपोर्ट्स के अनुसार स्टूडेंट्स के लिए Philosophy Facts in Hindi यहाँ दिए गए हैं:
- दर्शनशास्त्र का अध्ययन करने से आपकी आलोचनात्मक रूप से सोचने और प्रेरक रूप से बहस करने की क्षमता में सुधार हो सकता है।
- कई प्रसिद्ध वैज्ञानिकों, लेखकों और राजनेताओं की पृष्ठभूमि दर्शनशास्त्र में है, जिनमें आइजैक न्यूटन, थॉमस जेफरसन और सुसान सोंटेग शामिल हैं।
- दर्शनशास्त्र का अध्ययन व्यक्तियों को नैतिक मुद्दों और नैतिक दुविधाओं की गहरी समझ विकसित करने में मदद करता है।
- दर्शन विश्व, ब्रह्मांड और समाज के बारे में सोचने का एक तरीका है।
- दर्शनशास्त्र दो ग्रीक शब्दों फिलिन और सोफिया से आया है, जिसका अर्थ है “ज्ञान का प्रेम”।
- भारतीय दर्शन का जनक शंकराचार्य को कहा जाता है।
- दर्शन की मुख्य शाखाओं में नैतिक, लोगिक, मनोविज्ञान, और मूल्यांकन शामिल हैं।
- दर्शन के माध्यम से मनुष्य अपने जीवन को अर्थपूर्ण बनाने और सत्य की खोज करने का प्रयास करता है।
- अरिस्टोटल (Aristotle) यूनानी दार्शनिक और वैज्ञानिक थे, जिन्होंने विभिन्न विषयों में विचार किए, जैसे कि नैतिकता, राजनीति, और विज्ञान।
- प्रसिद्ध दर्शनशास्त्री कार्ल मार्क्स (Karl Marx) जर्मन फिलॉसफर, नेता, और आर्थिक सिद्धांतकार थे, जिन्होंने कम्यूनिज्म के सिद्धांतों को विकसित किया।
- चार्वाक एक प्रसिद्ध धरशरणार्थी थे। चार्वाक एक दार्शनिक विचार प्रणाली थी जो लगभग 600 ईसा पूर्व भारत में उभरी और दुनिया को समझने और जीने के लिए भौतिकवाद पर जोर दिया।
सम्बंधित ब्लॉग
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सीखने का नया ठिकाना स्टडी अब्राॅड प्लेटफाॅर्म Leverage Edu. खुशी को 1 वर्ष का अनुभव है। पूर्व में वह न्यूज टुडे नेटर्वक, जागृत जनता न्यूज (JJN) में कंटेंट राइटर और स्क्रिप्ट राइटर रह चुकी हैं। खुशी ने पत्रकारिता में स्नातक कंप्लीट किया है। उन्हें एजुकेशनल ब्लाॅग्स लिखने के अलावा रिसर्च बेस्ड स्टोरीज करना पसंद हैं।
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Essay on Pragmatism in Hindi
Here is an essay on ‘Pragmatism’ in Hindi language!
उपयोगितावाद भूगोल का वह दर्शन है, जिसमें अनुभव के आधार पर प्राप्त ज्ञान विभिन्न तथ्यों व मानव हित में उनका प्रयोग किए जाने पर ध्यान दिया जाता किन करने में अपने अनुभव, प्रयोगात्मक खोजवीन और सत्यता का प्रयोग करता है, उसका यह चिंतन इन समस्याओं के हल करने में इतना मददगार होता है कि वह उसकी उपयोगिता को बढ़ाने में सहायक होता है ।
आर॰एन॰ बेक (R.N. Beck) ने बताया है कि उपयोगितावाद दर्शन का वह स्तर है, जिसमें अनुभवों द्वारा प्राप्त ज्ञान समस्याओं की जाँच करने में सहायक होता है । इन समस्याओं के साथ वह सामंजस्य स्थापित करता है । तथा इन समस्याग्रस्त स्थितियों में अपनी उपयोगिता को बढ़ाकर उनका हल ढूंढना है ।
उपयोगितावाद भी प्रत्यक्षवाद की भांति वैज्ञानिक नियमों पर आधारित है । दोनों में अन्तर केवल इतना है कि यह चिन्तन मानव समस्याओं के हल की दिशा में प्रयासरत रहता है जबकि प्रत्यक्षवाद समस्याओं को पहचानने तक सीमित रहता है । उपयोगितावाद में मानव मूल्यों को अधिक महत्व दिया जाता है ।
यह भौगोलिक वातावरण में समाज की समस्याओं को हल करने का सुझाव देता है मानव जिन भौगोलिक परिस्थितियों में रहता है, वहां रहने वाला समाज की जिन समस्याओं का सामना करता हैं, मानव उसके साथ सामन्जस्य स्थापित करके अपना जीवन व्यतीत करता है, वह उसकी उपयोगिता को बढ़ा देता है ।
उदाहरणत: पनामा नहर के निर्माण व संचालन में जो भौतिक रुकावटें आई उनका मानव ने हल फूटकर अर्थात लोहे के फाटकों द्वारा जल का स्तर ऊँचा उठाकर जलयान संचालन को सुगम बनाकर उसकी उपयोगिता को बढ़ा दिया है । स्पष्ट है कि यह चिन्तन कर्म प्रधान भी है व उपभोक्ता प्रधान भी ।
शोधकर्ता अपने शोध क्षेत्र की समस्याओं को पहचानता है, उनका हल ढ़ूढंता है, ताकि उनके हल द्वारा सम्बन्धित क्षेत्र की जनसंख्या को लाभ पहुँचाया जा सके । वर्तमान में समन्वित ग्रामीण विकास योजनाएँ किसी चिन्तन से प्रभावित है । भूगोलविद् विकास से सम्बन्धित समस्याओं को हल करने की दिशा में जो सुझाव देता है, उसके कारण उसको अभिकर्ता (Action Agent) का नाम भी दिया जस्ता है ।
उपयोगितावाद उन कार्यों का चिन्तन है । जो मानव समाज के कल्याण के लिए किए जाते हैं । यह कार्यों के नियोजन का चिन्तन न होकर उनके क्रियान्वन का चिन्तन है । प्रत्येक नियोजित कार्य का एक लक्ष्य होता है । इसमें मानव मूल्य समाहित रहते हैं । यह वास्तविकता के काफी समीप होता है ।
अत: स्पष्ट है कि जहां उद्देश्यवाद मानव कल्याण की योजनाएँ मानव मूल्यों को ध्यान में रखकर प्रस्तुत करता है, वहीं उपयोगितावाद उन योजनाओं के क्रियान्वन पर जोर देता है, जो मानव मूल्यों को ध्यान में रखते हुए किए जाते हैं । वर्तमान में पर्यावरण में प्रदूषण बढ़ने के साथ इनकी कीमत बहुत बढ़ गई है ।
ADVERTISEMENTS:
यह व्यवहारिक (Applied) चिन्तन है, जो समाज की समस्याओं का हल उसके उपयोग अर्थात् लाभ की दृष्टि से खोजता है । इसी कारण यह प्रयोगात्मक सोच है । वह सामान्य नियमों एवं सिद्वान्तों से बंधे रहने के साथ-साथ इनको हल का निर्देशन देता है । उपयोगितावादी विचारक सैद्वान्तिक नियमों के साथ-साथ प्रायोगिक स्थिति पर भी ध्यान देता है ।
भूगोलविद् भौगोलिक परिस्थितियों को ध्यान में रखकर क्षेत्रीय स्थानीय समस्याओं का पर्यवेक्षण करता है, और समाज को सुधारने की भावना के साथ उनका हल प्रस्तुत करता है । उदाहरणत: टिहरी बाँध परियोजना का उद्देश्य जल विद्युत उत्पादन है, जिसकी मानव समाज को अधिक आवश्यकता है । यद्यपि इसके लिए अनेक गांवों को उजाड़ा गया है, लेकिन इस परियोजना के लाभ उस नुकसान की अपेक्षा अधिक उपयोगी माने गए हैं ।
उपयोगितावाद की विशेषताएँ:
1. यह सैद्वान्तिक नियमों का पालन मानव कल्याण की दृष्टि से देखता है । इसी कारण यह व्यवहारिक भूगोल कहलाता है ।
2. यह हमें वास्तविकताओं के समीप लाता है ।
3. भौगोलिक स्थान की विशेषता को परिवर्तनीय मानता है । मानव अपने ज्ञान के साथ उसके रूप में परिवर्तन लाता हैं, जहाँ आज कृषि होती है, वही स्थान आने वाले समय में अपनी सुविधाजनक स्थिति के कारण औद्योगिक विकास को जन्म दे सकता है ।
4. भौगोलिक स्थान समय विशेष के मानव विचारों की अभिव्यक्ति होता है ।
5. भौगोलिक स्थानों की सरंचना का निर्माण अथवा पुर्ननिर्माण मानव समस्याओं के हल करने की दृष्टि से किया जाता है, ताकि यह परिवर्तन मानव के लिए अति उपयोगी साबित हो सके ।
6. स्थानिक वास्तविकता मानव अनुभव की संयुक्त अभिव्यक्ति को बताती है ।
7. स्थान विशेष के अध्ययन के लिए परिकल्पनाओं (Hypothesis) की रचना पर मानव ज्ञान का प्रभाव हावी होता है । यह परिकल्पनाएं मानव ज्ञान में वृद्धि के साथ-साथ संशोधित की जाती रहती है । मानव हित की दृष्टि आज की सोच आने वाले कल की दृष्टि से अनुपयोगी व अहितकारी हो सकती है । परमाणु शक्ति को विकास की परिकल्पना प्रारम्भ में एक अलग दृष्टिकोण से जुड़ी थी, उसके विध्वंसकारी प्रभावों को देखते हुए आज उसके रचनात्मक उपयोग की योजनाएं बनाई जाने लगी है, जो मानव हित की दृष्टि से अत्यन्त उपयोगी हैं ।
8. आज भौगोलिक अध्ययन उद्देश्यात्मक है । भूगोलविद् एक क्षेत्र का अध्ययन इस दृष्टि से करने का प्रयास करता है कि वह मानव के लिए कौन-कौन सी उपयोगी व कल्याणकारी योजनाओं के क्रियान्वन की संस्तुति कर सकता है । ऐसा वह वैज्ञानिक विधियों के परिपेक्ष्य में करता है ।
उपयोगितावाद मानव को केन्द्र मानता है । वह मानव के ज्ञान, सोच, व्यवहार, इच्छओं व आशाओं पर ध्यान देता है । इन मानवीय गुणों का समावेश समस्याओं के हल में निहित होता है । मानव के सभी कार्य चाहें वह आवास, जीवन यापन, से सम्बन्धित हों या विभिन्न सुविधाओं जैसे चिकित्सा, स्वास्थ्य, शिक्षा, परिवहन के विस्तार से सम्बन्धित हो ।
चाहे वह पर्यावरण के साथ समजस्य स्थापित करने, समाज में व्याप्त असमानता मिटाने, पिछड़े क्षेत्रों के विकास की योजनाएँ बनाने से संबन्धित हो, उपयोगितावादी चिन्तन की पुष्टि करते हैं । उसके इन कार्यों में मानव कल्याण की भावना निहित रहती है । और यह मानव के सर्वागींण विकास के लिए उपयोगी होते हैं । उसके निर्णय मानव मूल्य आधारित होते हैं ।
ऐसा करने में वह भौगोलिक नियमों की अवहेलना नहीं करता है । वह समय व स्थान के साथ मानव की बदलती आवश्यकताओं के अनुरूप विकास की योजनाएँ तैयार करता है, ताकि उनकी उपयोगिता बनी रहे । समय-समय पर वह इनमें संशोधन करता रहता है ।
अनुभवों से उसे जो ज्ञान प्राप्त होता है, उससे वह अपने आपको और भी उपयोगितावादी चिन्तन के समीप पाता है । उदाहरण के तौर पर एक कृषक अनुकूल भौगोलिक परिस्थिति में यदि धान का उत्पादन करता है, तो वह समय-समय पर विकसित नई प्रजातियों का प्रयोग करके उत्पादन बढ़ान में प्रयासरत रहता है, नए-नए बीजों का प्रयोग करने के लिए सिंचाई, नवीन कृषि यंत्र, कीटनाशक दवाओं आदि जिस साधन की भी आवश्यकता होती है, वह उन्हें जुटाता है और कृषि भूमि को उत्पादन के लिए और भी उपयोगी बना देता है ।
भूमि को किस प्रकार के कार्यों में प्रयुक्त किया जाए, ताकि उसको अधिक से अधिक लाभ मिले तथा भौगोलिक परिस्थितियों में किसी प्रकार का अवरोध पैदा न हो, यह उसकी उपयोगितावादी सोच का परिणाम है । नगर के व्यापारिक क्षेत्र के समीप किस प्रकार, के उद्योग स्थापित हों, कि उनकी वहां उपस्थिति बनी रहे, और उनके उत्पाद की कीमत बाजार के अनुरूप बनी रहे । यह उपयोगितावादी विचारधारा के ही एक अंग है ।
इसमें यह भावना अन्तनिर्हित है कि उपभोक्ता को वह उत्पाद ऐसे मूल्य पर मिले जिससे उस उत्पाद की माँग भी बनी रहे व उद्योग के विकास को भी बढ़ावा मिले । यहाँ विदित होता है कि उपयोगितावाद में मानव एक प्रमुख तथ्य है । उसके विचार हमारी क्रियाएं निश्चित करते है और वह इन क्रियाओं को अपने अनुभवों द्वारा निर्धारित करता है ।
मानवतावादी भूगोल मानव और विज्ञान का समन्वय है । मानव की यह समन्वयक सोच समाज के लिए नियमों के अन्तर्गत उसके कल्याण से जुड़ी होती है । मानव समझ व ज्ञान उद्देश्यात्मक एवं विषयमूलक, आदर्श एवं भौतिक आचरण का समन्वय है । स्पष्ट है कि उपयोगितावाद की सार्थकता तभी है, जब वह मानव कल्याण की योजनाओं से जुड़ी हो ।
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सांख्य दर्शन
भारत की ख्याति शुरू से एक दार्शनिक देश के रूप में रही है ,जहाँ भौतिकतावाद की अपेक्षा धर्म -दर्शन की ओर सामान्य से थोड़ा अधिक झुकाव देखा गया है | यहाँ के ऋषि -महर्षियों ने सृष्टि की रचना, जीवन- मरण का चक्र, आत्मा- परमात्मा ,स्वर्ग- नर्क की अवधारणा ,पुनर्जन्म, जीवन के लक्ष्य इत्यादि सीमांत अवधारणाओं पर गहन चिंतन किया है | भारतीय धार्मिक ग्रंथों में मुक्ति का महत्व सदा अनन्य रहा है | सभी धर्मों में मुक्ति को ही जीवन के अंतिम लक्ष्य के तौर पर प्रस्तुत किया गया है | इसी संबंध में प्राचीन भारत में मुक्ति की संविधाओं के तौर पर दर्शन के 6 मुख्य मार्ग विकसित हुए जिन्हें षड्दर्शन कहा जाता है | इन 6 दर्शनों के मूल एवं प्रयोजनों में थोड़ा अंतर अवश्य था किंतु सभी मुक्ति के ही साधन थे | इन 6 दर्शनों को 2-2 के तीन वर्गों में विभाजित किया जा सकता है, क्योंकि उन्हें एक दूसरे का संबंधी एवं अनुपूरक माना जाता है | ये हैं : सांख्य एवं योग , न्याय एवं वैशेषिक तथा मीमांसा एवं वेदांत दर्शन | एक अन्य दर्शन के तौर पर चर्वाक दर्शन भी महत्वपूर्ण है | इस लेख में हम सांख्य दर्शन की चर्चा करेंगे | भारतीय इतिहास पर अन्य उपयोगी लेखों को पढने के लिए लिंक किये गये लेख देखें :
- 16 Mahajanapadas in Hindi
- Ancient Indian History book list
- Quit India Movement in Hindi
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सांख्य दर्शन जिसका शाब्दिक अर्थ संख्या अथवा “अंक” है , षड्दर्शन में सबसे प्राचीन है। इसका उल्लेख प्रत्यक्ष तौर पर भगवद्गीता में भी है और अप्रत्यक्ष रूप में उपनिषदों में भी है। इसके प्रवर्तक कपिल मुनि थे | सांख्य दर्शन जैन धर्म से सम्बन्धित है । इसके अनुसार 25 मूल तत्त्व होते हैं जिनमें प्रकृति, बुद्धि महत,आत्म चेतना (अहंकार), आकाश, वायु, अग्नि, जल, पृथ्वी, श्रुति, स्पर्श, दृष्टि, स्वाद, गन्ध, पाँच कर्मेन्द्रियां -वाक्, धारणा, गति, उत्सृजन एवं प्रजनन, मस्तिक, पुरुष इत्यादि हैं | मूल तत्वों में प्रकृति प्रथम है। प्रकृति का तात्पर्य यहाँ द्रव्य (matter) से है। इस दर्शन के अनुसार सृष्टि अथवा विकास किसी दैविक शक्ति की प्रक्रिया नहीं है, बल्कि प्रकृति के अन्तर्वर्ती स्वभाव का परिणाम है। इसके अनुसार प्रकृति से बुद्धि महत का उदय होता है और परिणामतः आत्म चेतना की उत्पत्ति होती है। आत्म चेतना या अहंकार पाँच अन्य सूक्ष्म तत्त्वों को जन्म देता है जो हैं : आकाश, वायु, अग्नि , जल तथा पृथ्वी | इन 5 सूक्ष्म तत्त्वों से 5 भौतिक तत्त्वों अर्थात “पंच-महाभूतों” की उत्पत्ति होती है। पुनः इसके आधार पर 5 ज्ञानेन्द्रियों श्रुति, स्पर्श, दृष्टि, स्वाद एवं गन्ध तथा 5 कर्मेन्द्रियों वाक्, धारणा, गति, उत्सृजन एवं प्रजनन की उत्पति होती है। आत्म चेतना या अहंकार “मस्तिक” को जन्म देता है जो मूल तत्त्वों में 24वाँ है | यह समस्त इन्द्रियों तथा बाह्य संसार के बीच एक मध्यस्थ का कार्य करता है। सांख्य दर्शन के अनुसार शरीर और यहाँ तक कि सम्पूर्ण विश्व आत्म चेतना की ही उपज है | 25वाँ तत्त्व है पुरुष | इसका तात्पर्य “आत्मा” से है।
सांख्य दर्शन का एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण सिद्धान्त “त्रिगुण सिद्धान्त” है | इसमें मनुष्य के 3 गुणों का वर्णन है ,यथा 1.सतगुण (सदाचार,सत्य, विवेक, सौन्दर्य और सद्भावना आदि) , 2.रजो गुण (वासना,हिंसा, स्फूर्तिव, उग्रता, क्रियाशीलता इत्यादि ) तथा 3.तमस गुण (मूर्खता , उदासी, अप्रसन्नता आदि) | प्रकृति की अविकसित अवस्था में ये तीनों गुण सामान परिमाण में होते हैं; परन्तु जैसे-जैसे सृष्टि का विकास होता है,तीनों में से एक गुण अधिक प्रभावशाली हो जाता है और उनके अनुसार ही मनुष्य सृष्टि की व्याख्या करते हैं। इस त्रिगुणात्मक सिद्धांत ने भारतीय जीवनशैली एवं विचारधारा को अनेक रूपों में प्रभावित किया है | सांख्य दर्शन में 6 अध्याय और 451 सूत्र है। सांख्य दर्शन ने वैदिक के साथ-साथ गैर वैदिक आत्माओं में भी आत्मा के कई प्राचीन सिद्धांतों को प्रभावित किया है। सांख्य दर्शन के तहत विकसित विचारों का उल्लेख भगवद् गीता, उपनिषदों और वेदों जैसे प्रारंभिक हिंदू धर्मग्रंथों में पाया गया है। सांख्य दर्शन ने बौद्ध और जैन अवधारणाओं को भी प्रभावित किया है। सांख्य का उद्देश्य यह दिखाना है कि दर्द के बंधन से आत्मा की अंतिम मुक्ति कैसे प्रभावित की जाती है।
अन्य दर्शनों का संक्षिप्त परिचय
चार्वाक दर्शन अथवा लोकायत : चार्वाक दर्शन केवल भौतिकवाद में विश्वास रखता है | इसके अनुसार भौतिक तत्वों से बना हुआ मनुष्य का भौतिक शरीर ही उसका एकमात्र तत्व है | मृत्यु ही जीवन का अंत है और इसके बाद पुनर्जन्म, स्वर्ग- नर्क जैसी कोई अवधारणा नहीं होती | अतः एक जीवन में अधिक से अधिक सुख की प्राप्ति करना ही इस दर्शन के अनुसार मनुष्य का उद्देश्य होना चाहिए | यह षड्दर्शन में से एक मात्र ऐसा दर्शन है जो नास्तिक है अर्थात ईश्वर की सत्ता या वेदों की प्रमाणिकता में विश्वास नहीं रखता | अन्य सभी दर्शन आस्तिक हैं | इसके प्रवर्तक चार्वाक ऋषि थे |
वैशेषिक दर्शन : यह भी एक यथार्थवादी तथा विश्लेषणात्मक दर्शन है | इसके प्रवर्तक कणाद या उलूक थे | यह दर्शन विभिन्न प्रकार की परम वस्तुओं में अंतर करने का प्रयत्न करता है और सभी वस्तुओं को पंच-महाभूत (अर्थात पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि, और आकाश) के अंतर्गत वर्गीकृत करता है | इन्हीं पंचमहाभूतों के परमाणु जब आपस में जुड़ते हैं तब इस दर्शन के अनुसार सृष्टि का सृजन होता है और जब इन परमाणुओं का विघटन होता है तो इस सृष्टि का अंत हो जाता है |
न्याय दर्शन : यह दर्शन वैशेषिक दर्शन के पांच मूल तत्वों में एक अन्य तत्व “अभाव” को जोड़ता है | यह उन सभी द्रव्यों को स्वीकार करता है जो वैशेषिक दर्शन द्वारा प्रतिपादित किए गए हैं | इसके अनुसार सृष्टि की रचना ईश्वर ने की है किंतु ईश्वर एक ऐसी आत्मा है जो कर्म और जीवन -मरण के चक्र से मुक्त है | इस दर्शन की एक महत्वपूर्ण अवधारणा है “प्रमाण” इसके अनुसार चार प्रकार के प्रमाण होते हैं जो हैं : प्रत्यक्ष, अनुमान, उपमान, और शब्द (अर्थात साक्ष्य) | इस दर्शन के प्रवर्तक गौतम ऋषि हुए |
योग दर्शन : सभी भारतीय दर्शनों में पतंजलि महर्षि द्वारा प्रतिपादित योग दर्शन ही ऐसा दर्शन है जो न केवल भारत में बल्कि विश्व भर में सर्वाधिक प्रचलित है | इस दर्शन में आत्म नियंत्रण और यातना को सर्वोपरि माना जाता है | जो व्यक्ति इसके सिद्धांतों को आत्मसात कर लेता है उसे “योगी” कहा जाता है | इस दर्शन के अनुसार सृष्टि की रचना ईश्वर ने नहीं की बल्कि एक उत्कृष्ट ऊर्जा ने की है | इस दर्शन के अनुसार निम्नलिखित 8 क्रियाओं के द्वारा मोक्ष की प्राप्ति हो सकती है जिसे “अष्टांग योग” कहते हैं – 1. यम अर्थात सत्य, अहिंसा, ब्रह्मचर्य इत्यादि के द्वारा आत्म नियंत्रण; 2.नियम अर्थात पवित्रता, संतोष, संयम इत्यादि का अनुपालन; 3. आसन अर्थात शरीर की कुछ निर्धारित मुद्राओं के द्वारा योग ; 4. प्राणायाम अर्थात श्वास पर नियंत्रण; 5. प्रत्याहार अर्थात इंद्रियों का प्रशिक्षण; 6. धारणा अर्थात ध्यान को केंद्रित करना; 7. ध्यान अर्थात मन को सांसारिकता से हटाना; तथा 8. समाधि – यह ध्यान की अंतिम अवस्था है जिसमें केवल आत्मा शेष रहती है और संपूर्ण व्यक्तित्व विलीन हो जाता है |
मीमांसा दर्शन या पूर्व मीमांसा : मीमांसा वैदिक साहित्य एवं ब्राह्मण ग्रंथों को ठीक से समझने की एक प्रणाली है | यह मनुष्य के कर्तव्यों के निर्धारण और जीव -प्राणी तथा जगत के बारे में सच्चे ज्ञान की प्राप्ति में वेदों को ही एकमात्र साधन मानता है | इस दर्शन के अनुसार मोक्ष की प्राप्ति के दो मार्ग बताए गए हैं :- कर्म मार्ग तथा ज्ञान मार्ग ( अन्य दर्शनों में मुक्ति का एक तीसरा मार्ग भी बताया गया है जो कि भक्ति मार्ग है) | इसके प्रवर्तक जैमिनी थे |
वेदांत दर्शन या उत्तर मीमांसा : इस दर्शन के प्रवर्तक बादरायण हुए और इस दर्शन का मूल ग्रंथ उनके द्वारा रचित ब्रह्म -सूत्र है | वेदांत दर्शन का आधार उपनिषद है | इसे अद्वैतवाद भी कहा जाता है | इसके अनुसार सृष्टि के निर्माण, पालन- पोषण और विनाश के लिए ईश्वर के तीन अलग-अलग नाम और रूप हैं जो कि क्रमशः ब्रह्मा, विष्णु और महेश (शिव) हैं | यह दर्शन मानता है कि संपूर्ण जगत एक माया है, अथवा मिथ्या है | केवल ब्रह्म ही परम सत्य है | इसीलिए इसे “अद्वैतवाद” कहते हैं | प्राचीन भारत के महान दार्शनिक आदि शंकराचार्य का वेदांत शास्त्रीय (classical) वेदांत है |
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