जीवन में गुरु का महत्व पर निबंध
गुरु का महत्व वर्तमान समय में ही नहीं बल्कि पुराने समय से ही सर्वोपरि रहा है। गुरु को हमेशा भगवान का दर्जा दिया जाता है। हमें अपने माता-पिता के बाद जो कुछ भी सिखाया जाता है, वह सब गुरु की ही देन होती है।
गुरु ही हमें सच्चाई और अच्छाई के मार्ग को बताते हैं और सही राह पर लाते है। गुरु का दर्जा हमारे भारत में भगवान से भी ऊंचा माना जाता है और जीवन में गुरु के बिना शिष्यों का कोई भी कार्य नहीं हो पाता। हर कार्य के लिए हम सभी लोगों को गुरु की इच्छा जानी चाहिए।
जीवन में गुरु का महत्व निबंध के माध्यम से गुरु के महत्व पर विशेष रूप से चर्चा करेंगे और जीवन में गुरु का महत्व निबंध लेखन हिंदी भी जानेंगे।
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गुरु का महत्व निबंध 250 शब्दों में (Guru ka Mahatva Essay in Hindi)
गुरु का मानव के जीवन में सबसे बड़ा महत्व होता है। माता-पिता पहले गुरु होते हैं और माता-पिता के बाद जो दर्जा गुरु को दिया जाता है, वह सर्वोपरि है। गुरु के सामने स्वयं देवता भी अपना सर झुकाते हैं। भारत में प्राचीन समय से ही गुरुओं का विशेष महत्व रहा है और मनुष्यों के लिए गुरु का दर्जा सर्वोपरि होता है।
गुरु हमें सही राह चुनने में सहायता करते हैं और गुरु हम सभी लोगों को सफलता के मार्ग पर अग्रसर करते हैं। सभी शिष्यों के लिए एक गुरु चिराग की तरह होते हैं, जो शिष्यों के जीवन को और रोशनी से भर देते हैं। मुख्य रूप से विद्यार्थी जीवन अर्थात शिष्यों के लिए गुरु की भूमिका सबसे ज्यादा अहम है।
गुरु शब्द की उत्पत्ति दो शब्दों से हुई है गु और रू। यदि इसके शाब्दिक अर्थ को देखें तो गू का अर्थ अंधकार और रू का अर्थ उजाला होता है। अर्थात गुरु शिष्यों के जीवन में अंधकार को दूर कर देते हैं और उनके जीवन को उजाले से भर देते हैं।
गुरु अपने सभी शिष्यों के अंधकार रुपी जीवन को प्रकाश की ओर ले जाते हैं और उन्हें सच का मार्ग दिखाते हैं। गुरु अपने सभी विद्यार्थियों को हर एक तरह से अलग-अलग विषयों से संबंधित जानकारियां प्रदान करते हैं, जो उनके जीवन को हर एक पड़ाव पर सुरक्षित करती है।
गुरु हमेशा अपने शिष्यों को अनुशासित, विनम्र और बड़ों का सम्मान करना सिखाते हैं। हर एक व्यक्ति के जीवन में गुरु की एक अहम भूमिका होती है और हर एक व्यक्ति गुरु के प्रति अपने आस्था और विश्वास के साथ अपने अपने सम्मान को प्रकट करते हैं।
गुरु का मुख्य उद्देश्य अपने विद्यार्थियों को सफलता के मार्ग पर ले जाना होता है और उन्हें अच्छा ज्ञान के सागर से अवगत कराना होता है। गुरु अपने हर एक शिष्य को साहित्य, कला और जीवन के हर एक पड़ाव को समझने की अहम शिक्षा प्रदान करते हैं।
गुरु का स्थान पुराने समय से ही सर्वोपरि रहा है और स्वयं भगवान भी गुरु को पूजते हैं। गुरु को सम्मान देने के लिए हमारे भारत में विशेष रुप से गुरु पूर्णिमा मनाया जाता है और इस दिन गुरु को याद कर के मंदिर और घरों में उनकी पूजा भी की जाती है।
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जीवन में गुरु का महत्व निबंध लेखन हिंदी
भारत में प्राचीन काल से ही गुरु और शिष्य की परंपरा रही है। देवताओं के भी गुरु थे। महाभारत काल में गुरु द्रोणाचार्य एकलव्य और पांडव और कौरवों के गुरु रहे थे। ऋषि अंगीरस, भगवान श्री कृष्ण के गुरु हुए थे। गुरु वशिष्ठ भगवान श्री राम के गुरु थे।
वेदव्यास, सांदीपनि, दूर्वाशा, गर्ग मुनि जैसे कई महान गुरु प्राचीन काल में हुए, जिन्होंने कई महान राजाओं को शिक्षा दी थी। गुरु अंगिरा को देवताओं का पहला गुरु माना जाता है। उनके पुत्र बृहस्पति भी गुरु बने। बृहस्पति के पुत्र भारद्वाज भी गुरु बनके कई राजा और देवताओं को शिक्षा दिए थे।
अच्छे गुरु के गुण
- अच्छे गुरु के पास शैक्षिक लक्ष्य होता है। उनके पास शिक्षा देने की सर्वश्रेष्ठ कौशल होती है।
- एक अच्छे शिक्षक के पास व्यापक ज्ञान होता है।
- अच्छा शिक्षक छात्रों के प्रश्नों के सटीक उत्तर प्रदान करने के लिए लगातार अपने ज्ञान का विस्तार करते ही रहते हैं।
- अच्छा शिक्षा कभी अपने ज्ञान पर गर्व नहीं करते क्योंकि उन्हें पता है ज्ञान अनंत है, कितना भी ज्ञान प्राप्त कर लिया जाए, वह अधूरा ही है।
- एक अच्छा शिक्षक विद्यार्थी के साथ एक सहयोगी मित्र की तरह बर्ताव करते हैं। वे बालकों को चुनौतियों से उभरने में मदद करते हैं।
- एक अच्छा शिक्षक अपने विद्यार्थियों में कभी भेदभाव नहीं करते। उनके लिए सभी विद्यार्थी एक बराबर है और सभी को एक समान शिक्षा देना उनका कर्तव्य होता है।
- अच्छा शिक्षक अपने शिष्य के न केवल शैक्षणिक प्रदर्शन बल्कि उसके समग्र विकास पर भी ध्यान देता है।
- एक अच्छा शिक्षक अपने छात्रों की समस्याओं को सहानुभूति पूर्ण, समझदार तरीके से और करुणा के साथ संबोधित करते हैं।
- एक अच्छे गुरु में शैक्षणिक सफलता और व्यक्तिगत विकास दोनों को बढ़ावा देने का गुण होता है।
गुरु का महत्व
माता-पिता को प्रथम गुरु माना जाता है लेकिन माता-पिता पर केवल अपने बालक को संस्कार देने और उन्हें शिक्षा देने की जिम्मेदारी होती है। लेकिन एक गुरु पर सभी बच्चों को एक समान शिक्षा देने की जिम्मेदारी होती है। उनके लिए हर एक बालक एक समान होते हैं। इसलिए उनका कर्तव्य होता है कि वह एक बालक को अपने बच्चों की तरह देखें।
गुरु के ज्ञान और संस्कार के आधार पर एक अज्ञानी बालक ज्ञानी बन जाता है और अपने अंधेरे भरे जीवन को ज्ञान की रोशनी से प्रकाशित कर देता है। गुरु निस्वार्थ भाव से अपने शिष्य को ज्ञान देते हैं। सभी शिष्यों को शिक्षा देने की उनकी मनसा एकमात्र उन्हें सफल बनाना और एक अच्छा व्यक्ति बनाना होता है।
गुरु के ज्ञान का कोई तोल नहीं होता। बिना गुरु के व्यक्ति सही मायने में इंसान नहीं बन सकता। गुरु के महत्व को बढ़ाने के लिए ही हर साल गुरु वेद व्यास के जन्म दिन के अवसर पर गुरु पूर्णिमा मनाया जाता है।
बिना गुरु के जीवन अंधेरे के समान है। बिना अपने गुरु चाणक्य के क्या चंद्रगुप्त एक महान सम्राट बन पाते?, जो भी व्यक्ति अपने जीवन में किसी विशेष क्षेत्र में सफल है तो उसके पीछे उसके गुरु का हाथ है।
अपने शिक्षक से मार्गदर्शित होकर ही एक बालक अपने जीवन के लिए एक सही रास्ता बना पाता है, जिस रास्ते पर चलकर वह अपने जीवन को निखारता है।
गुरु छात्रों को भगवान के द्वारा दिया हुआ एक अनमोल उपहार है। हर व्यक्ति के जीवन में उसके गुरु का सर्वश्रेष्ठ स्थान होता है। बिना गुरु के कोई भी व्यक्ति जीवन में सफल नहीं हो सकता क्योंकि गुरु के मार्गदर्शन पर ही एक बालक अपने जीवन में महारत हासिल करता है।
गुरु कुम्हार की तरह होते हैं। जिस प्रकार एक कुमार गीली मिट्टी को आकार देकर घड़ा बना देता है, उसी प्रकार एक शिक्षक भी अपने ज्ञान से एक बालक के जीवन को, उसके सपने को और उसके व्यक्तित्व को एक अच्छा आकार देते हैं।
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जीवन में गुरु का महत्व 850 शब्दों में निबंध (Guru ka Mahatva Essay in Hindi)
गुरु का महत्व वर्तमान समय में ही नहीं बल्कि पुराने समय से ही सर्वोपरि रहा है। गुरु को हमेशा भगवान का दर्जा दिया जाता है। हमें अपने माता-पिता के बाद जो कुछ भी सिखाया जाता है, वह सब गुरु की ही देन होती है। गुरु ही हमें सच्चाई और अच्छाई के मार्ग को बताते हैं और सही राह पर लाते है।
गुरु अपने सभी शिष्यों के अंधकार रुपी जीवन को प्रकाश की ओर ले जाते हैं और उन्हें सच का मार्ग दिखाते हैं। हर एक व्यक्ति के जीवन में गुरु की एक अहम भूमिका होती है और हर एक व्यक्ति गुरु के प्रति अपने आस्था और विश्वास के साथ अपने अपने सम्मान को प्रकट करते हैं।
गुरु का मुख्य उद्देश्य अपने विद्यार्थियों को सफलता के मार्ग पर ले जाना होता है और उन्हें अच्छा ज्ञान के सागर से अवगत कराना होता है।
गुरु अपने सभी विद्यार्थियों को हर एक तरह से अलग-अलग विषयों से संबंधित जानकारियां प्रदान करते हैं, जो उनके जीवन को हर एक पड़ाव पर सुरक्षित करती है। गुरु हमेशा अपने शिष्यों को अनुशासित, विनम्र और बड़ों का सम्मान करना सिखाते हैं।
गुरु शब्द की उत्पत्ति
गुरु शब्द की उत्पत्ति दो शब्दों को मिलाकर हुई है, जो कि गु और रु है। गु शब्द का अर्थ अंधकार होता है और रु शब्द का अर्थ रोशनी होता है, अर्थात गुरु शब्द का अर्थ ही अंधकार से निकालकर ज्ञान के तरफ लेकर जाना होता है।
जिंदगी में मनुष्य को अंधकार रूपी परेशानियों से गुरु ज्ञान के उस प्रकाश की ओर ले कर जाते हैं, जो शिष्यों के लिए बहुत ही अहम होता है। हम सभी लोगों के पहले गुरु हमारे माता-पिता ही होते हैं, परंतु यह हमें संस्कारित शिक्षा प्रदान करते हैं और दुनिया से लड़ने और दुनिया को समझने की शिक्षा हमें हमारे विद्यालय में शिक्षक प्रदान करते हैं।
बिना गुरु के दुनिया का क्या होगा
यदि गुरु नहीं होंगे तो लोग शिक्षित नहीं हो पाएंगे और बिना शिक्षा के लोग अंधकार में भटकेंगे।
जैसे अंधेरा होने के बाद हम सभी लोग सामग्रियों को सिर्फ और सिर्फ टटोलते रहते हैं, ठीक उसी प्रकार बिना गुरु के जिंदगी में अंधकार छा जाएगा और हम ऐसे ही भटकते रहेंगे और दुनिया का कोई भी व्यक्ति काम नहीं आएगा।
यदि किसी भी सदस्य को उसके जीवन में गुरु नहीं मिला तो वह शिष्य अपने जीवन को दुखों से ही जिएगा और जीवन को सही रास्ते पर लाने के लिए गुरु की तलाश करते रहेगा।
गुरु पूर्णिमा का महत्व
गुरु पूर्णिमा एक बहुत ही पावन दिवस है, क्योंकि आज के दिन गुरु को याद करके उनकी पूजा की जाती है। यह एक ऐसा दिन होता है, जिस दिन सभी शिष्य अपने अपने गुरुओं को याद करते हैं और उनसे मिलकर अपने भविष्य के लिए आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।
गुरु पूर्णिमा के दिन हर एक घर में गुरु नानक देव की पूजा की जाती है, क्योंकि गुरु नानक देव जी नहीं शिक्षा को उजागर किया था। इस दिन अपने भविष्य को बनाने के लिए लोग गुरु कोई आशीर्वाद के साथ साथ दान धर्म का काम भी करते हैं, जिससे वह पुण्य कमाते हैं।
गुरु को अपने अच्छे से सफल होता है गर्व
जब शिष्य गुरु से शिक्षा प्राप्त करके अपने जीवन में आगे बढ़ते हैं तो इसका पूरा श्रेय गुरु को मिलता है और शिष्य अपने गुरु को खुद का गर्व मानते हैं। लोग अपनी सफलता के पीछे का कारण अपने गुरु और माता-पिता को बताते हैं।
ऐसे में यदि किसी गुरु का शिष्य अच्छे तरीके से सफल हो जाता है तो गुरु को भी अपने और शिष्य पर गर्व महसूस होता है। जिंदगी में जो व्यक्ति कुछ भी करता है या कुछ भी बनता है तो वह अपने इस उपलब्धि का श्रेय अपने गुरु और माता-पिता के सपोर्ट को देता है। गुरु हमेशा अपने शिष्यों पर गर्व महसूस करते हैं और उन्हें सद मार्ग के रास्ते पर लाते हैं।
अपने गुरु को सबसे बड़ा गुरु दक्षिणा किसने दिया था?
हमारे भारतीय इतिहास में बहुत सी ऐसी घटनाएं हैं, जहां पर शिष्यों ने अपने अपने गुरुओं के लिए विशेष बलिदान दिया है और इन सभी कहानियों में सबसे ऊपर बलिदान की कहानी महाभारत में एकलव्य को दिया जाता है।
एकलव्य ने अपने गुरु के लिए अपनी अंगुली काट दी थी और उन्हें अपनी अंगुली दक्षिणा के रूप में दी थी। एकलव्य एक ऐसा महारथी था, जिसने सिर्फ गुरु की प्रतिमा से गुरु के सभी कलाए सीख लिया था और बहुत ही धुरंधर धनुर्विद्या का ज्ञाता हो गया था।
गुरु द्रोणाचार्य को ऐसा डर था कि कहीं उनका अर्जुन को दिया गया वरदान गलत न साबित हो जाए। गुरु द्रोणाचार्य ने अर्जुन को ऐसा वरदान दिया था कि तुम इस धरती के सबसे ज्ञानी धनुर्धर बनोगे, परंतु एकलव्य की कला को देखकर द्रोणाचार्य जी को यह डर सताने लगा था।
इसी कारण से गुरु द्रोणाचार्य ने एकलव्य से उनके दाएं हाथ का अंगूठा दक्षिणा के रूप में मांग लिया। एकलव्य अपने गुरु को निराश नहीं करना चाहते थे, इसलिए उन्होंने बिना कुछ सोचे समझे तलवार निकालकर अपने अंगूठे को काट दिया और गुरु द्रोणाचार्य को दक्षिणा के रूप में दे दिया।
एकलव्य के इस बलिदान को गुरु के लिए किया गया सबसे बड़ा बलिदान माना जाता है।
गुरु सभी मानव के लिए सर्वोपरि है और हमें अपने गुरु के सेवा के लिए हमेशा कुछ ना कुछ करना चाहिए। जहां तक हो सके हम सभी लोगों को अपने गुरु की सेवा के लिए कुछ ना कुछ करना चाहिए।
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Comment (1)
बहुत ही अच्छा निबंध है गुरूजी के उपर बहुत बहुत धन्यवाद । जय गुरू देव। सतसत नमन गुरू को।
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गुरु का महत्व पर निबंध
गुरु का महत्व पर निबंध जीवन में गुरु का महत्व पर निबंध
गुरु का मनुष्य के जीवन में विशेष महत्व होता है। माता -पिता हमारे प्रथम शिक्षक होते है। गुरु का दर्जा माता -पिता से भी ऊंचा होता है। उदहारण स्वरुप अगर हम अँधेरे कमरे में बंद हो जाए, और अन्धकार में ही हम किसी चीज़ को ढूंढ रहे है लेकिन हम विवश है और उस चीज़ को ढूंढ नहीं पा रहे है, ऐसे में गुरु के दिशा निर्देश के बैगर हम उस चीज़ को ढूंढने में असमर्थ है। गुरु जी जैसे ही हमें बताते है और वह चीज़ हमे तुरंत प्राप्त हो जाती है। गुरु के बैगर हमारी ज़िन्दगी दुःख से भर जायेगी और हम जीवन में विभिन्न चीज़ों को सीखने में नाकामयाब होंगे। गुरु हमें अपने जिन्दगी में सही दिशा दिखाते है। वह हमारे जीवन में पथ प्रदर्शक के रूप में कार्य करते है।
भारत में प्राचीन काल से ही गुरु का विशेष महत्व है। मनुष्य के लिए गुरु सबसे ऊपर होता है। गुरु हमे सही मार्ग चुनने में सहायता करते है। गुरु शब्द का निर्माण दो शब्दों को मिलाकर होता है। गुरु में गु का अर्थ है अन्धकार और रु का अर्थ है रोशनी। गुरु हमे अंधकारमय जीवन से प्रकाश की ओर ले जाते है। गुरु एक दिये की तरह होते है, जो शिष्यों के जीवन को रोशन कर देते है। खासकर विद्यार्थी जीवन में गुरु की अहम भूमिका होती है। गुरु विद्यार्थी को हर प्रकार के विषयो से संबंधी जानकारी देते है ओर जीवन के अलग अलग पड़ाव में उन्हें मुश्किलों से लड़ना सीखाते है। विद्यार्थियों को अनुशासित होना, विनम्र, बड़ो का सम्मान करना सीखाते है।
विद्यालय में विद्यार्थी अपने जिन्दगी में सही और गलत का फर्क नहीं कर पाते है। गुरु जी विद्यार्थी को यह अंतर करना सीखाते है, ताकि वे जिन्दगी के कठिनाईयों में सही राह को चुन सके। विद्यार्थी अपने जीवन में हर कठिन परिस्थिति का सामना डट कर और निडर होकर कर सके। गुरु की असीमित शिक्षा और आशीर्वाद से विद्यार्थी जिंदगी के विषम परिस्थितियों को पार कर लेते है।
गुरु की भूमिका सबके जीवन में होती है। हर व्यक्ति गुरु के प्रति आस्था, विश्वास और सम्मान रखता है और छोटे बड़े फैसले लेने से पूर्व अपने गुरु की राय जानना चाहता है। हर व्यक्ति को अलग अलग चीज़ों का ज्ञान प्राप्त करने के लिए गुरु की आवश्यकता होती है। उदाहरण स्वरुप अगर आप गाड़ी चलना सीखना चाहते है, उसके लिए आपको ड्राइविंग गुरु की आवश्यकता होती है, अगर आप संगीत सीखना चाहते है, उसको सीखने के लिए संगीत गुरु की ज़रूरत होती है। अगर हम जीवन में इस प्रकार के कलाओ को सम्पूर्ण रूप से सीखना चाहते है, तो आपको गुरु के पास जाना होता है।
गुरु का प्रमुख उद्देश्य है, विद्यार्थी को सफल बनाना और उन्हें भरपूर ज्ञान प्राप्त करवाना। प्राचीन काल में गुरु शिष्यों को आश्रम में साहित्य, कला और जीवन के फलसफे इत्यादि पर ज्ञान प्रदान करते थे, लेकिन अब वर्त्तमान में गुरु अपने शिष्यों को कॉलेज, स्कूल इत्यादि शिक्षा संस्थानों में शिक्षा प्रदान करते है। शिष्य हमेशा गुरु के पैर छूकर उनका आशीर्वाद लेते थे। गुरु हमेशा शिष्य का भला चाहते है और वे अपने शिष्यों को सफलता की चोटी पर विराजमान देखना चाहते है।
गुरु को सम्मान देने लिए गुरु पूर्णिमा मनाया जाता है। इस दिन घरो और मंदिरो में विशेष पूजा पाठ होती है। कई स्थानों में जहाँ गुरु अपने शिष्यों की शिक्षा में सम्पूर्ण सहयोग देते है, उनका गुरु पूर्णिमा के दिन आदर सत्कार किया जाता है। इस दिन गुरु दक्षिणा के रूप में दान किया जाता है और इससे शिष्यों को पुण्य प्राप्ति होती है।
सच्चा गुरु भक्त अपने सभी लक्ष्यों को पूर्ण करने में सफल होता है। एक बच्चे की प्रथम गुरु उनकी माँ होती है जो उन्हें बोलना, चलना, लिखना पढ़ना सिखाती है। हमेशा से हिन्दू धर्म में गुरु का विशेष महत्व रहा है। संत कबीर ने भी गुरु भक्ति के कई पदों की रचना की थी। एक गुरु हमेशा अपने शिष्य को अपने आप से सफल और श्रेष्ठ देखना चाहता है। यह हमारे गुरु का बड़प्पन है। गुरु सिर्फ शिक्षक के रूप में ही नहीं बल्कि विभिन्न रूपों में हो सकते है जैसे माता, पिता, भाई, बहन, दोस्त। हम विभिन्न लोगो से ज़िन्दगी में सीख सकते है और ज्ञान प्राप्त कर सकते है।
हर किसी के जीवन में गुरु का विशेष महत्व होता है। मनुष्य को गुरु का महत्व समझना चाहिए और जीवन पर्यन्त उनका सम्मान करना चाहिए। उनके आशीर्वाद के बैगर मनुष्य अधूरे है। गुरु को प्रणाम किये बिना हम कोई शुभ कार्य शुरू नहीं करते है। उनके द्वारा दी गयी शिक्षा मनुष्य को जीवन भर काम आती है। उनके आशीर्वाद से कीमती चीज़, उनके शिष्य के लिए और कुछ हो ही नहीं सकती है। गुरु के प्रति हमेशा शिष्य के मन में श्रद्धा होनी चाहिए, तभी शिष्य अपने कार्य के बारीकियों को भली भाँती सीख सकते है।
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1 thought on “गुरु का महत्व पर निबंध”
Bhavesh manhar
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Guru Ka Mahatva Essay In Hindi | गुरु का महत्तव पर निबंध हिंदी में
Guru Ka Mahatva Essay In Hindi: भारतीय संस्कृति में गुरु को उच्च स्थान प्राप्त है क्योंकि उनका महत्व बहुत अधिक है। गुरु एक शिक्षक, मार्गदर्शक और आदर्शों का स्रोत है। गुरु की शिक्षा से ही विद्यार्थी जीवन में अनेक सफलताएं प्राप्त करते हैं। उनका मार्गदर्शन हमें सही और उचित मार्ग प्रदान करता है। गुरु का आशीर्वाद ही हमें जीवन की कठिनाइयों से लड़ने की शक्ति देता है। अगर आप गुरु का महत्तव पर निबंध हिंदी में (Guru Ka Mahatva Essay In Hindi) खोज रहे हैं तो आपको इस लेख को पूरा अंत तक जरूर पढ़ना चाहिए।
मनुष्य की जीवन यात्रा में गुरु का सर्वाधिक महत्व है। प्रारंभ से ही, माता-पिता ही हैं जो हमारा मार्गदर्शन करते हैं, जीवन की प्रारंभिक शिक्षा देते हैं। हालाँकि, माता-पिता से परे, गुरु को देवताओं से भी ऊपर, पूजनीय दर्जा प्राप्त है। भारत में, प्राचीन काल से ही गुरु को ज्ञान और आत्मज्ञान का प्रतीक माना जाता रहा है।
हमारे जीवन को आकार देने में गुरु की भूमिका महत्वपूर्ण है। वे धार्मिकता के मार्ग को रोशन करते हैं, हमें जीवन की भूलभुलैया से सफलता और पूर्णता की ओर मार्गदर्शन करते हैं। अंधेरे में दीपक की तरह, गुरु अपने शिष्यों के जीवन को गहन ज्ञान और ज्ञान से रोशन करते हैं। विशेषकर विद्यार्थी जीवन के चरण में गुरु का प्रभाव गहरा और अपरिहार्य होता है।
“गुरु” शब्द की उत्पत्ति दो संस्कृत शब्दों के मेल से हुई है, “गु” का अर्थ है अंधकार और “रु” का अर्थ है प्रकाश। मूलतः, एक गुरु वह होता है जो अपने शिष्यों के जीवन से अज्ञानता के अंधेरे को दूर करता है और उसे ज्ञान और ज्ञान की उज्ज्वल रोशनी से भर देता है। गुरु अपनी शिक्षाओं के माध्यम से अपने शिष्यों को अज्ञानता की छाया से सत्य के ज्ञान की ओर ले जाते हैं।
गुरु केवल शिक्षक नहीं होते; वे संरक्षक, मार्गदर्शक और अभिभावक हैं। वे अपने शिष्यों को ज्ञान और कौशल से सुसज्जित करते हैं जो जीवन की यात्रा के हर मोड़ पर उनकी रक्षा करते हैं। अनुशासन, विनम्रता और बड़ों के प्रति श्रद्धा कुछ ऐसे गुण हैं जो गुरुओं द्वारा अपने शिष्यों में पैदा किए जाते हैं, जो उन्हें एक सर्वांगीण व्यक्ति बनाते हैं।
प्रत्येक व्यक्ति अपने जीवन में गुरु के महत्व को स्वीकार करता है, उनके प्रति श्रद्धा और विश्वास व्यक्त करता है। गुरु का प्राथमिक उद्देश्य अपने छात्रों को ज्ञान और ज्ञान के विशाल महासागर का अनावरण करते हुए सफलता और आत्मज्ञान की ओर ले जाना है।
जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में, चाहे वह साहित्य, कला या आध्यात्मिकता हो, गुरु अमूल्य शिक्षाएँ प्रदान करते हैं, समग्र विकास और समझ का पोषण करते हैं। गुरु की शिक्षाएँ मात्र शैक्षणिक ज्ञान से परे हैं; वे अस्तित्व और ब्रह्मांड के सार में गहन अंतर्दृष्टि समाहित करते हैं।
पूरे इतिहास में, गुरु को सर्वोच्च सम्मान दिया गया है, यहाँ तक कि देवता भी उनकी बुद्धिमत्ता और मार्गदर्शन को नमन करते हैं। गुरु के अमूल्य योगदान का सम्मान करने के लिए, गुरु पूर्णिमा भारत में बड़े उत्साह के साथ मनाई जाती है। इस शुभ दिन पर, भक्त अपने जीवन में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका को स्वीकार करते हुए, अपने श्रद्धेय गुरुओं के प्रति अपना आभार व्यक्त करने और आशीर्वाद लेने के लिए इकट्ठा होते हैं।
संक्षेप में, गुरु मानव जीवन में अद्वितीय महत्व का स्थान रखते हैं, अपने गहन ज्ञान और निस्वार्थ मार्गदर्शन से पीढ़ियों का मार्गदर्शन, प्रेरणा और ज्ञानवर्धन करते हैं।
Jivan Mein Guru Ka Mahatva Essay In Hindi 10 Lines
- जीवन में गुरु का महत्व अत्यंत उच्च है, क्योंकि वे हमें ज्ञान, दिशा, और समझ प्रदान करते हैं।
- गुरु शिक्षकों के समान नहीं होते, वे हमें आदर्शों का पाठ पढ़ाते हैं और जीवन की महत्वपूर्ण सीखें देते हैं।
- शिक्षा के क्षेत्र में गुरु का महत्व अत्यधिक है, क्योंकि वे हमें न केवल पाठ्यक्रम के बारे में शिक्षा देते हैं, बल्कि जीवन की महत्वपूर्ण शिक्षाएं भी।
- गुरु हमें सही और गलत के बीच अंतर को समझाते हैं और हमें सही राह चलने के लिए मार्गदर्शन करते हैं।
- गुरु की शिक्षा से ही हम अपने क्षमताओं को पहचानते हैं और अपने सपनों को पूरा करने के लिए महान प्रयास करते हैं।
- गुरु हमें न केवल अकादमिक ज्ञान प्रदान करते हैं, बल्कि वे हमें नैतिकता और संस्कृति के महत्व को समझाते हैं।
- गुरु के बिना जीवन अधूरा होता है, क्योंकि वे हमें आत्म-समर्पण और सेवाभावना की महत्वपूर्णता को समझाते हैं।
- गुरु के प्रेरणादायक शब्द हमें निरंतर उत्साहित करते हैं और हमें संघर्ष की भावना से लबालब करते हैं।
- गुरु का महत्व धार्मिक और सामाजिक संदर्भ में भी अत्यधिक है, क्योंकि वे समाज के स्तर को उच्च और नैतिक बनाए रखने में मदद करते हैं।
- इसलिए, हमें गुरु का सम्मान करना चाहिए और उनके उपदेशों का पालन करना चाहिए, ताकि हमारा जीवन सफल और संतोषप्रद हो सके।
इस लेख में हमने आपको गुरु का महत्तव पर निबंध हिंदी में (Guru Ka Mahatva Essay In Hindi) की जानकारी दी हैं। आशा करते हैं अब आपको जीवन में गुरु का महत्व पर निबंध मिल गया होगा!
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गुरु का महत्व.
गुरु का महत्व गुरु का जीवन में होना विशेष मायने रखता है | गुरु हमारे दुर्गुणों को हटाता है | गुरु के बिना हमारा जीवन अंधकारमय होता है |
is nibhand me last me kya bolna he yah to bataya hi nahi phir bhi thik he very nice
Best article on Guru ki mahima, thanks
Gurudakchina lena jaruri hai kya?
राम राम जी 🙏
शुद्ध परंपराओं का पालन करते हुए गुरु शिक्षा ग्रहण करनी चाहिए कहा गया है गुरु कहिए जांच पानी पीजिए छान! ब्रह्म गुरु है वर्षों के व्यक्तित्व का निर्माण करता है संसार की स्थिति उपस्थित और प्रलय के हेतु। गुरु विष्णु हैं वह शिष्य की रक्षा करते हैं उसके अंदर के नकारात्मकता को दूर करते हैं और उसके गुणों को दूर भगाते हैं भगवान विष्णु किसी भी कारणवश भूले भटके शिष्य को भी शब्द मार्ग पर लाकर सहज रूप से स्वीकार कर लेते हैं भगवान विष्णु के प्रति प्रेम रखने वाला मनुष्य बैकुंठधाम को जाता है। वह मनुष्य के जन्म मृत्यु के भय का नाश करने वाला है। भक्ति प्रवाह को पढ़ाने वाला है। शंकर जी यानी महादेव चराचर के गुरु भय रहित शांति मूर्ति आत्माराम और जगत के परम आराध्य देव हैं। घमंडी और धर्म की मर्यादा को तोड़ने वाले का विनाश करने वाले। भारतीय साहित्य में गुरु के महत्व की महत्ता बहुत अधिक हैं जो शिष्य के अंधकार को दूर करके सत मार्ग पर लाने का काम करता है ज्ञान का दीपक जलाता है। हम एक प्रसंग यहां देना उचित समझते हैं क्योंकि हिंदीकुंज काम एक बड़ी संस्था है हम भी इस पर एक सामान्य लेखक के रूप में कार्य करते हैं हमारी कुछ रचनाएं हिंदीकुंज काम ने विगत कई वर्षों से अपनी साइड पर प्रकाशित कर रखा है इसलिए मैं एक अयोध्या का प्रसंग देता हूं। अयोध्या नरेश चक्रवर्ती राजा दशरथ के गुरु वशिष्ट जी थे जिन की सलाह के बिना अयोध्या का दरबार में कोई भी कार्य नहीं किया जाता था। गुरु वशिष्ट जी के आदेशों का अक्षर से पालन किया जाता था। बहुत-बहुत धन्यवाद
गुरु के गुण अनगिनत हैं। उन गुणों का वर्णन करने में समस्त सागरों के जल से बनी स्याही भी असफल रहती है। संत कबीर का यह दोहा हमें गुरु की महिमा बताता है। सबधरतीकागदकरूँ, लेखनीसबवनराय। सातसमुद्रकीमसिकरूँ, गुरुगुनलिखानजाए।। कितने ही भिन्न-भिन्न विषयों पर हम गुरुओं से मार्गदर्शन पा सकते हैं। उनका कार्यक्षेत्र विशाल होता है। वे शिष्य के मन की स्थिति को तो समझते ही हैं, साथ ही ये भी स्पष्ट रूप से जानते हैं कि उसके लिये सही क्या है। राजा-महाराजाओं के समय उनके गुरु ही शासनादि विषयों में उनके सलाहकार होते थे। राजधर्म और प्रजा का पालन करने की सभी जरूरी बातों का शिक्षण करते थे। महान सम्राट चंद्रगुप्त को उनके गुरु चाणक्य ने ही प्रशिक्षित और पथ-प्रदर्शन किया था। गुरु न केवल शिष्य के हित का ख्याल रखते हैं बल्कि समाज की भी दशा और परिस्थितियों को सुधारने के यत्न करते हैं।गुरु को ईश्वर से भी अधिक पूज्य कहा गया है। हमारे ग्रंथ कहते हैं- गुरुर्ब्रह्मागुरुर्विष्णुगुरुर्देवोमहेश्वरा। गुरुर्साक्षातपरब्रह्मतस्मैश्रीगुरवेनमः।। अर्थात गुरु साक्षात परमात्मा है। क्योंकि परमात्मा की ही तरह गुरु के पास भी शिष्य का जीवन सँवारने या नष्ट करने का अवसर होता है। उनके वचनों और आदेशों को समझना और पालन करना शिष्य के हित में होता है। ईश्वर का ज्ञान हमें गुरु के सत्संग से ही मिलता है। वही हमारा ईश्वर तक पहुँचने में मार्ग प्रशस्त करते हैं। यदि गुरु के प्रति ही प्रेम भाव और भक्ति न हो तो व्यक्ति ईश्वर को पाने की अमूल्य निधि से वंचित रह जाएगा।जो भी महान लोग हुए हैं, चाहे वे कृष्ण हों या राम, गाँधी या बुद्ध हों या कोई और हों- इन सभी के गुरु थे। सभी से इन्होंने कुछ-न-कुछ सीखा था। किंतु जिन लोगों के जीवन में कोई गुरु नहीं होता, उनका सिर्फ पतन होता है, उत्कर्ष नहीं। ऐसे लोग केवल धन, पद आदि के लिये मारे-मारे फिरते हैं लेकिन उनके हाथ कुछ नहीं आता। गुरु के अभाव में जीवन की कल्पना करना ही असंभव है। गुरु एक कुम्हार की भाँति होता है, जो शिष्य को एक मिट्टी के घड़े की तरह सही आकार देता है। यदि मिट्टी को उचित कुशल कुम्हार न मिलें तो वह आजीवन मिट्टी ही रह जाएगी और उत्कर्ष न पा सकेगी।
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गुरू का ज्ञान और शिष्य की ऊर्जा
गुरु पूर्णिमा के दिन हम गुरु-शिष्य परंपरा का सम्मान करते हैं। महान स्वप्नदद्रष्टाओं की पीढ़ियों ने वेदांत-आत्म-प्रबंधन के विज्ञान-को जीवित रखा था। गुरु शब्द का अर्थ है ‘अधंकार को दूर करने वाला’ । गुरु अज्ञान को दूर करके हमें ज्ञान का प्रकाश देता है। वह ज्ञान जो हमें बतलाता है कि हम कौन हैं; विश्व से कैसे जुड़ें और कैसे सच्ची सफलता प्राप्त करें। सबसे अधिक महत्वपूर्ण कि कैसे विश्व से ऊपर उठ कर अनश्वर परमानंद के धाम पहुंचे। आज के दिन हम फिर से अपने को मानव संपूर्णता के प्रति अपने आप को समर्पित करते हैं।
वेदांत का अध्ययन करें,उसे अंगीकार करें और उसी के अनुसार जीयें ताकि हम उसे भविष्य की पीढ़ियों को हस्तातंरित कर सके। वेदांत हमे बाहर से राजसी बनाता है ओर भीतर से ऋषि। बिना ऋषि बने भौतिक सफलता भी हमारे हाथ नहीं लगती है। शिक्षक का ज्ञान और छात्र की ऊर्जा का एक सम्मिलन एक जीवंत प्रगतिशील समाज के निर्वाण की ओर ले जाता है।
आज छात्रों की प्रवृत्ति शिक्षक को कमतर आंकना है, आज का दिन उस संतुलन को पुन:स्थापित करने में सहायक होता है। यह जीवन के हर क्षेत्र में गुरु के महत्त्व पर बल देता है। एक खिलाड़ी की प्रतिभा एक कोच की विशेषज्ञता के अंतर्गत दिशा प्राप्त करती है।
समर्पित संरक्षक गुरु एक संगीतकार की प्रतिभा को तराशता है। अध्यात्म के मार्ग में एक खोजी के मस्तिष्क का अज्ञान गुरु का प्रबोध दूर करता है। गुरु-शिष्य का संबंध सर्वाधिक महत्व का है। गुरु के लिये गोविंद जैसी श्रद्धा होती है। ब्रह्म-विद् और ब्रह्मज्ञानी तथा ईश्वरीय साक्षात्कार में स्थित गुरु जो सूक्ष्मतम आध्यात्मिक संकल्पनाओं को प्रदान करने मे समर्थ हो, उसके मार्गदर्शन के बिना आध्यात्मिक विकास असंभव है। गुरु के प्रति संपूर्ण समर्पण – प्रपत्ति – एक छात्र की सर्व प्रथम योग्यता है
इसका मतलब अंधानुकरण नहीं है। खोजी को सिखाये गये सत्यों पर सवाल उठाना, छानबीन और विश्लेषण करना चाहिये ताकि वह अपने व्यक्तित्व को समझ सके, आत्मसात कर सके तथा उच्चतर क्षेत्र तक उसका रूपांतरण कर सके। इसे प्रश्न कहते हैं। अंतत: सेवा ही एक श्रेष्ठ छात्र की पहचान है। क्योंकि बिना शर्त सेवा ही छात्र को विन्रमता का महत्व सिखाती है जो उसे गुरु के ज्ञान को ग्रहण करने के अनुकूल बनाती है ।
गुरु पूर्णिमा का उल्लेख व्यास पूर्णिमा की तरह किया जाता है। व्यास ने वेदों को संहिताबद्ध किया था। जिस किसी भी स्थान से आध्यात्मिक या वैदिक ज्ञान प्रदान किया जाता है उसे वेदांत में व्यास के अद्वितीय योगदान को स्वीकार करने के लिये व्यासपीठ कहा जाता है।
सभी शिक्षक अपना स्थान ग्रहण करने के पहले व्यास के सामने नमन करते हैं। उनका सम्मान प्रथम गुरु की तरह किया जाता है, हालाँकि गुरु-शिष्य परंपरा का आरंभ उनके बहुत पहले हो चुका था। व्यास ऋषि पराशर और मछुहारिन सत्यवती के पुत्र और प्रसिद्ध ऋषि वशिष्ठ के पोते थे। वे ऋषि पिता के ज्ञान और मछुहारिन की व्यवहारिकता की साकार मूर्ति थे। जीवन में आगे बढ़ने के लिये दोनों को अपनाना अनिवार्य है। हिंदू कैलेण्डर के अनुसार व्यास का जन्म आषाढ़ की पूर्णिमा को हुआ था। ‘पूर्णिमा’ प्रकाश का प्रतीक है और व्यास पूर्णिमा आध्यात्मिक प्रबोधन की ओर संकेत करती है। व्यास महाकाव्य महाभारत के रचयिता थे।
महाभारत न केवल एक कला, काव्यात्मक श्रेष्ठता और मनोरंजन की कृति है, बल्कि जीवन के बारे में इसकी उपयोगी शिक्षाओं और भागवत गीता के अमर संदेश ने युगों से भारतीयों की पीढ़ियों को प्रेरित किया है। ऑलिवर गोल्डस्मिथ के शब्दों मेँ “और वे निहारते रहे/और विस्मय बढ़ता गया/कि एक मस्तक में इतना सब ज्ञान कैसे सिमट गया”, इस बात की सटीक अभिव्यक्ति है कि व्यास इतने महान दृष्टा थे और गुरु पूर्णिमा के दिन हम उनका सम्मान करते हैं।
लेखक के बारे में
लेखक हिंदी स्पीकिंग ट्री डेस्क
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गुरु के महत्व पर निबंध : Guru ke Mahatva Per Nibandh Hindi Mein
गुरु के महत्व पर निबंध || Guru ke Mahatva Per Nibandh Hindi Mein
गुरु के महत्व पर निबंध -
गुरु का महत्व वर्तमान समय ही नहीं बल्कि पुराने समय से ही सर्वोपरि रहा है। गुरु को हमेशा भगवान का दर्जा दिया जाता है। हमें अपने माता-पिता के बाद जो कुछ भी सिखाया जाता है। वह सब गुरु की ही देन होती है। गुरु ही हमें सच्चाई और अच्छाई के मार्ग को बताते हैं, और सही राह पर लाते हैं। गुरु शब्द की उत्पत्ति दो शब्दों से हुई है गू और रू।
यदि इसके शाब्दिक अर्थ को देखें तो गु का अर्थ अंधकार और रु का अर्थ उजाला होता है। अर्थात् गुरु शिष्यों के जीवन में अंधकार को दूर कर देते हैं और उनके जीवन को उजाले से भर देते हैं। गुरु अपने सभी शिष्यों के अंधकार रुपी जीवन को प्रकाश की ओर ले जाते हैं और उन्हें सच का मार्ग दिखाते हैं।
हर एक व्यक्ति के जीवन में गुरु की एक अहम भूमिका होती है और हर एक व्यक्ति गुरु के प्रति अपने आस्था और विश्वास के साथ अपने अपने सम्मान को प्रकट करते हैं। गुरु का मुख्य उद्देश्य अपने विद्यार्थियों को सफलता के मार्ग पर ले जाना होता है और उन्हें अच्छा ज्ञान के सागर से अवगत कराना होता है। गुरु अपने सभी विद्यार्थियों को हर एक तरह से अलग-अलग विषयों से संबंधित जानकारियां प्रदान करते हैं, जो उनके जीवन को हर एक पड़ाव पर सुरक्षित करती है। गुरु हमेशा अपने शिष्यों को अनुशासित विनम्र और बड़ों का सम्मान करना सिखाते हैं।
प्रस्तावना (Introduction) -
गुरु का महत्व उनके शिष्यों को भली-भांति पता होता। अगर गुरु नहीं तो शिष्य भी नहीं अर्थात् गुरु के बिना शिष्य का कोई अस्तित्व नहीं होता है। प्राचीन काल से गुरु और उनका आशीर्वाद भारतीय परंपरा और संस्कृति का अभिन्न अंग है। प्राचीन समय में गुरु अपनी शिक्षा गुरुकुल में दिया करते थे। गुरु से शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात शिष्य उनके पैर स्पर्श करके उनका आशीर्वाद लेते थे। गुरु का स्थान माता-पिता से अधिक होता है। गुरु के बगैर शिष्यों का वजूद नहीं होता है।
जिंदगी के सही मार्ग का दर्शन छात्रों को उनके गुरुजी करवाते हैं। जीवन में छात्र सही गलत का फर्क गुरुजी के शिक्षा के बिना नहीं कर सकते हैं। शिष्यों के जिंदगी में गुरु का स्थान सबसे ऊंचा होता है। गुरु जो भी फैसला लेते हैं उनके शिष्य उनका अनुकरण करते हैं। गुरु शिष्यों के मार्गदर्शक हैं और शिष्यों की जिंदगी में अहम भूमिका निभाते हैं।
गुरु शब्द की उत्पत्ति (Origin of the world Guru) -
दोस्तों गुरु शब्द की उत्पत्ति दूसरों को मिलाकर की गई है, जो कि गु और रु है। गु शब्द का अर्थ अंधकार होता है और रु शब्द का अर्थ रोशनी होता है, अर्थात गुरु शब्द का अर्थ ही अंधकार से निकालकर ज्ञान के तरफ लेकर जाना होता है। जिंदगी में मनुष्य को अंधकार रूपी परेशानियों से गुरु ज्ञान के उस प्रकाश की ओर ले कर जाते हैं जो शिष्यों के लिए बहुत ही अहम होता है।
हम सभी लोगों के पहले गुरु हमारे माता-पिता होते हैं, परंतु यह हमें संस्कारित शिक्षा प्रदान करते हैं और दुनिया से लड़ने और दुनिया को समझने की शिक्षा हमें हमारे विद्यालय में शिक्षक प्रदान करते हैं।
गुरु की इज्जत करना है शिष्य का परम धर्म (Respecting the Guru is the supreme religion of the Disciple) -
गुरु का सम्मान शिष्यों को सदैव करना चाहिए। समाज में कुछ बुरे मनसा वाले लोग रहते हैं, वह अपने गुरु का सम्मान और आदर नहीं करते हैं। ऐसे लोग अपने जीवन में कभी भी उन्नति नहीं कर पाते हैं। गुरु का अपमान यानी शिक्षा का अपमान करना होता है। इसलिए बच्चों को बचपन से ही गुरु की इज्जत करना बड़े लोग यानी माता-पिता सिखाते हैं।
अगर हम दूसरे नजरिए से देखें तो जिंदगी में हम जो कुछ भी सीखते हैं वह सब गुरु के ही बदौलत होता है क्योंकि अगर गुरु नहीं तो ज्ञान नहीं और ज्ञान नहीं तो कुछ नहीं। ऐसे भागदौड़ भरी दुनिया में ज्ञान ही सब कुछ है जिसके पास ज्ञान वही विद्यमान है। क्योंकि आजकल की जो नौकरियां होती हैं उसमें केवल आपकी बुद्धि यानी कि ज्ञान का ही परिचय होता है।
गुरु से अधिक शक्तिशाली कोई नहीं (No one is more powerful than the Teacher) -
दुनिया का सबसे मजबूत हिस्सा गुरु और उनकी शिक्षा होती है। गुरु के ज्ञान के बगैर शिष्यों का जीवन अधूरा है। बड़े-बड़े लोग भी अपने गुरुओं के समक्ष शीश झुकाकर उनका सम्मान करते हैं। गुरुओं के सत्कार में उनके शिष्य कोई भी कमी नहीं छोड़ते है।
इसलिए कहा गया है कि बिन गुरु ज्ञान नहीं।
इसका अर्थ हुआ कि बिना गुरु के ज्ञान नहीं है।
बिना गुरु के दुनिया का क्या होगा (What would happen to the word without a Guru) -
दोस्ती यारी गुरु नहीं होंगे, तो लोग शिक्षित नहीं हो पाएंगे और बिना शिक्षा के लोग अंधकार में भटकेगे। दोस्तों जैसे अंधेरा होने के बाद हम सभी लोग सामग्रियों को सिर्फ और सिर्फ टटोलते रहते हैं, ठीक उसी प्रकार बिना गुरु के जिंदगी में अधिकार छा जाएगा और हम ऐसे ही भटकते रहेंगे और दुनिया का कोई भी व्यक्ति काम नहीं आएगा।
यदि किसी भी शिष्य को उनके जीवन में गुरु नहीं मिला तो वह शिष्य अपने जीवन को दुखों से ही जिएगा और जीवन को सही रास्ते पर लाने के लिए गुरु की तलाश करते रहेंगे।
गुरु पूर्णिमा का महत्व (Importance of Guru Purnima) -
दोस्तों गुरु पूर्णिमा एक बहुत ही पावन दिवस है, क्योंकि आज के दिन गुरु को याद करके उनकी पूजा की जाती है। यह एक ऐसा दिन होता है जिस दिन सभी शिष्य अपने अपने गुरुओं को याद करते हैं और उनसे मिलकर अपने भविष्य के लिए आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।
गुरु पूर्णिमा के दिन हर एक घर में गुरु नानक देव की पूजा की जाती है, क्योंकि गुरु नानक देव जी ने ही शिक्षा को उजागर किया था। इस दिन अपने भविष्य को बनाने के लिए कुछ लोग अपने गुरु से आशीर्वाद लेते हैं और साथ में उनको जो अच्छा लगता है दान कर्म का काम भी करते हैं जिससे वह पुण्य कमाते हैं।
निष्कर्ष (Conclusion) -
आज के इस निबंध को पढ़ने के बाद हम सभी लोगों को यह सीख मिलती है कि गुरु सभी मानव के लिए सर्वोपरि है, और हमें अपने गुरु की सेवा के लिए हमेशा कुछ न कुछ करना चाहिए। जहां तक हो सके। तथा आज हमने यह भी सीखा कि गुरु के बिना इस संसार में कुछ भी नहीं है। गुरु है तो सब कुछ है।
जीवन में गुरु का महत्व पर निबंध (Essay on importance of Guru in life) -
हमारे जीवन में गुरु का विशेष महत्व होता है। आज के आर्टिकल में हम गुरु के महत्व के बारे में पढेंगे।
हर व्यक्ति की सफलता के पीछे गुरु का हाथ होता है। गुरु को भगवान से भी बढ़कर माना जाता है गुरु को उजाले का दीप माना जाता है गुरु के बिना व्यक्ति का जीवन अधूरा है गुरु के सहयोग से ही हर व्यक्ति सफल बनता है।
गुरु का होना अंधकार में देश के जैसे होते हैं। जो खुद जलकर दूसरों को उजागर करते हैं। माता के बाद दूसरा शिक्षक गुरु ही होते हैं गुरु से ली गई सच्चा संस्कार हमारी जीवन को आसान बना देती है।
गुरु ही वह व्यक्ति होता है जो खुद एक स्थान पर रहकर दूसरों को अपनी मंजिल तक पहुंचाता है गुरु हमेशा सभी को अच्छा ज्ञान देता है। गुरु सच्चे पथ प्रदर्शक होता है। हमारे जीवन में गुरु बहुत महत्वपूर्ण होते हैं।
मनुष्य के लिए भगवान से भी बढ़कर गुरु को माना जाता है क्योंकि भगवान हमें जीवन प्रदान करता है। और गुरु हमें शिक्षा देकर इस जीवन को सही ढंग से जीना सिखाते हैं जो गुरु का मार्ग दर्शन करके चलता है। उसे जीवन में कभी ठोकरे नहीं खानी पड़ती हैं।
गुरु शब्द को देखा जाए तो गुरु दो शब्द के मेल से बनता है। किसने पहला शब्द जिसका अर्थ होता है। अंधकार और दूसरा शब्द रूप जिसका अर्थ होता है उजियारा यानी गुरु के नाम से ही हम पहचान कर सकते हैं कि यह हमें अंधकार से उजियारे की ओर ले जाने का कार्य करते हैं गुरु हमें अंधकार रूपी इस जीवन में प्रकाश रूपी ज्ञान देते हैं।
गुरु हमें शिक्षा के साथ-साथ संस्कारवान तथा अनुशासित विद्यार्थी बनाते हैं। व्यक्ति को जीवन में कुछ करना है तो उसे हर चीज के बारे में महसूस कराना होगा यह कार्य सिर्फ गुरु ही कर सकते हैं।
जो अपने शिष्य को प्रेम भाव के साथ समझा कर उन्हें अपने जीवन और भविष्य के लिए क्या उचित है और क्या आपके भविष्य को बर्बादी की ओर ले जाता है गुरु अनुभवी होते हैं वे अपने अनुभव का प्रयोग कर अपने चीजों को ज्ञान देते हैं।
गुरु विद्यालय में विद्यार्थियों को अनुशासन तथा शिक्षा देकर गुणवान व्यक्ति बनाता है। जिस व्यक्ति ने गुरु की कही गई बातों पर हमला किया और उन्हें गौर से जाना और सुधार किया है पर आज के जमाने में सबसे महान व्यक्ति है हमारे जीवन में हर परिस्थिति में गुरु की शिक्षा हमारे लिए महत्वपूर्ण होती है।
उदाहरण के तौर पर हम देखे हैं तो गुरु वह व्यक्ति होता है। जो हमें ज्ञान के पथ पर लाकर खड़ा करते हैं एक रुप से गुरु हमारे ड्राइवर होते हैं जो हमें सब कुछ सिखा कर ज्ञान से परिपूर्ण बनाते हैं।
शिक्षा देने वाला ही गुरु नहीं होता बल्कि गुरु वह होता है जो हमें अपनी आवश्यकता के अनुसार हमें सिखाता है। जैसे कोई क्रिकेटर बनाना चाहता है तो उसे क्रिकेट की ट्रेनिंग दिलाता है तथा हमें क्रिकेट खेलना सिखाता है और आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है एक व्यक्ति के पास गुरु होता है तो वह व्यक्ति भाग्यशाली माना जाता है।
हमारे देश में गुरु को और भी ज्यादा महत्व दिया जाता है। हमारे यहां गुरु को भगवान से भी बढ़कर माना जाता है। इसलिए कहते हैं "गुरुव देवो भव" हमारे देश में गुरु के सम्मान एवं महत्व को समझते हुए उनके चित्रकार को मनाते हुए।
हमारे देश में गुरु पूर्णिमा मनाई जाती है इस दिन लोग घरों में खुशियां मनाते हैं तथा अपने गुरुजनों को बुलाकर उनका मान सम्मान करते हैं। उन्हें भोजन कराते हैं। इस दिन विद्यार्थी गुरु की सेवा कर खुद को भाग्यशाली समझते हैं। और पुण्य की प्राप्ति करते हैं।
हमारी जीवन का यही बड़प्पन है कि हम बड़ों का आदर करें फोटो के साथ प्रेम पूर्वक करें तथा अतिथि का सम्मान करें इस प्रकार के हमारे जीवन के महत्वपूर्ण संस्कार तथा हमारे जीवन में सफलता प्राप्त करने का ज्ञान हमें गुरुद्वारा ही मिलता है। गुरु हमेशा अपने शिष्य को खुद से भी बेहतर बनाना चाहता है।
विद्यार्थियों का मानना होता है कि शिक्षक हमारे लिए पूरे साल हमारी सहायता करते हैं हमारे भविष्य की चिंता करते हैं क्यों ना हम एक दिन गुरु पूर्णिमा के दिन ही गुरु का आदर करें तथा उनके साथ प्रेम भाव प्रकट करें।
गुरु के द्वारा दिए गए ज्ञान सदुपयोग कर सभी को अंधकार आरोपी अज्ञान से दूर करते हुए छवि को शिक्षित बनाना है। ज्ञान ही एकमात्र ऐसी वस्तु है जिसे बांटने से वह कम नहीं होती बल्कि बढ़ती है इसलिए अपने ज्ञान को आगे से आगे शेयर करना चाहिए और सभी को शिक्षा के क्षेत्र में आगे बढ़ाना हमारा है।
प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में एक गुरु का हाथ जरूर होता है। इस संसार में माता और गुरु दो ही ऐसे व्यक्ति होते हैं। जिनका आशीर्वाद हमारे जीवन को सफल बना सकता है हमें गुरु को हर चमन नमन करना चाहिए हर शुभ कार्य में गुरु की आज्ञा लेनी चाहिए।
• "वह व्यक्ति जो ज्ञान से जीवन आसान बनाएं।
वही हमारे लिए गुरु कह लाए।।"
• गुरु की महिमा अपरंपार, गुरु ही लगाएंगे नैया पार।
गुरु जग में करता उजाला, गुरु से ही शुरु होता सफल जीवन।
• गुरु वही जो शिखर पर ले जाए
गुरु बिन घोर अंधेरा और, गुरु ज्ञान बिना जग
सूना सूना।
• गुरु ऋण से उऋण होने जैसा कुछ सोच नहीं पाता हूं।
आखिर में यही ख्याल गुरु बनकर ही रुक पाता हूं।
• गुरु सरीका नहीं कोई भाई , पढ़ ले इनसे मेरे भाई कभी कभी सोचा करता हूं।
• गुरु है ज्ञान है सार, अरे बच्चे के जीवन का आधार।"
• शिष्य को जो देते ज्ञान, इसी ज्ञान से शिष्य बनता महान।"
• "ज्ञान बांटने का काम जो करते शिक्षक, की जगह है भरते"।
• गुरु के राह दिखाते हैं चला खुद को ही पड़ता है।
• गुमनामी के अंधेरे में था पहचान बना दिया, दुनिया के गम से मुझे अनजान बना दिया उनकी ऐसी कृपा हुई गुरु ने मुझे एक अच्छा इंसान बना दिया।
• आपसे ही सीखा, आप से ही जाना, आपको ही बस हमने गुरु हे माना सीखा है सब कुछ बस आपसे हमने, शिक्षा का मतलब बस आपसे ही जाना।
• जीवन का पथ जहां से शुरू होता है वह रहा दिखाने वाला गुरु ही होता है।
• गुरु का महत्व कभी होगा ना कम भले कर ले कितनी भी उन्नति हम।
FAQ'S (Frequently Asked Questions)
प्रश्न 1. एक विद्यार्थी के जीवन में गुरु का क्या महत्व होता है?
उत्तर- दोस्तों गुरु हमारा सब कुछ होता है। अगर आप अपने गुरु को सच्चे दिल से मानते हो तो आपको किसी और को मानने की जरूरत है ही नहीं क्योंकि गुरु ही ईश्वर है। गुरु ही माता-पिता है। गुरु ही सब कुछ है। आज जो भी रिश्ते हैं। सब कुछ गुरु के रिश्ते के आगे पीछे हैं, क्योंकि गुरु ही हमें इन रिश्तों को निभाने के काबिल बनाता है इसलिए गुरु के बिना कुछ भी नहीं।
प्रश्न 2. गुरु क्यों महत्वपूर्ण है?
उत्तर - ना केवल आपके गुरु आपको आध्यात्मिक यात्रा में मदद करेगे, बल्कि आपके गृहस्थ जीवन में भी आपका मार्गदर्शन भी करेगे। वह आपको यह तय करने के लिए अंतर्ज्ञान शक्ति देंगे। जो कि आपके जीवन के लिए अच्छा होगा। गुरु ना केवल भविष्य बनाते हैं बल्कि समाज के प्रति हो रहे कार्य के विषय में भी बताते हैं इसलिए गुरु हमारे लिए अति महत्वपूर्ण है।
प्रश्न 3. जीवन में गुरु कौन होता है?
उत्तर - गुरु वह है, जो अपने मार्गदर्शन की शिक्षा के अनुसार आध्यात्मिक पथ पर चलकर विश्व मन और विश्व बुद्धि से ज्ञान प्राप्त कर चुके हैं। आध्यात्मिक मार्ग दर्शक अथवा गुरु किसे कह सकते हैं और उनके लक्षण कौन से हैं।
प्रश्न 4. हम गुरु पूर्णिमा क्यों मनाते हैं इसका महत्व बताते हुए निबंध लिखें?
उत्तर - पहला हैं हिंदू धर्म,गुरु पूर्णिमा को भगवान शिव की पूजा के लिए मनाया जाता है। हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान शिव ने अपने साथ अनुयायियों अथात् सप्तऋषियों को योग का ज्ञान दिया, और इस तरह एक गुरु बन गए। दूसरा है बौद्ध धर्म यह त्योहार बुद्ध को सम्मान देने के लिए मनाया जाता है जिन्होंने धर्म की स्थापना की आधार नींव रखी।
प्रश्न 5. गुरु की क्या विशेषता है?
उत्तर - केवल एक गुरु, जो ईश्वर को जानता है, दूसरों को सही ढंग से ईश्वर के प्रति शिक्षा दे सकता है। व्यक्ति को अपनी दिव्यता को पुनः पाने के लिए एक ऐसा ही सद्गुरु चाहिए। जो निष्ठापूर्वक सद्गुरु का अनुसरण करता है वह उसके समान हो जाता है, क्योंकि गुरु अपने शिष्य को अपने ही स्तर तक उठाने में सहायता करते हैं।
प्रश्न 6. जीवन का पहला गुरु कौन है?
उत्तर - जीवन का पहला गुरु हमारे माता और पिता होते हैं।
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मानव जीवन में गुरु की आवश्यकता
July 3, 2023
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By Shubham Jadhav
इस लेखे में आप जानेंगे कि मानव जीवन में गुरु की आवश्यकता क्यों है।
भारत की संस्कृति में गुरु को भगवान का दर्जा दिया है, गुरु ही हमे ज्ञान प्रदान करते हैं जिसके आधार पर हम इस जीवन में सफल हो पाते हैं। ज्ञान सबसे ज्यादा जरुरी है जिसकी पूर्ति केवल गुरु के द्वारा ही हो सकती है। ज्ञान के साथ साथ गुरु हमे उस परमेश्वर से भी अवगत करवाते हैं जिसने इस संसार का निर्माण किया है, इसीलिए गुरु का हमेशा से ही सम्मान किया जाता है।
प्राचीन काल में गुरुकुल हुआ करते थे जहा शिक्षा के साथ साथ धर्म का भी ज्ञान करवाया जाता था तभी से गुरुओ को सर्वश्रेष्ट माना जाता है। किसी भी इन्सान का प्रथम गुरु उसकी माँ को कहा गया है क्योकि माँ ही सबसे पहले अपने बच्चे को ज्ञान प्रदान करती है गुरु माँ के बाद जीवन में आते हैं।
गुरु शिक्षा के अलावा हमे जीवन जीने की कला, परमात्मा का महत्व, सम्मान करने की शिक्षा, संस्कार, ज्ञान विज्ञान से भी अवगत करवाते हैं ताकि हम समाज में सम्मान पा सकें और जीवन में आने वाली समस्याओ से निपट सके और अपने परिवार का पालन पोषण कर सके, धर्म संस्कृति को बचा सके तथा गलत का विरोध कर सकें। यह सब ज्ञान गुरु के द्वारा ही प्राप्त होता है।
आज के समय में शिक्षा को व्यापार बना दिया गया है पर गुरु अपने कार्यो को पूरी निष्ठा से कर रहे वो ज्ञान विज्ञान, संस्कार को बाटने का काम कर है पर शिक्षा को कुछ लोगो ने स्वार्थ के लिए इतना महंगा कर दिया है कि बहुत से लोग आज भी अशिक्षित है।
शिक्षा के बिना आप जीवन में सफल नही हो सकेंगे आप न धन अर्जित कर सकेंगे ना समाज में सम्मान पा सकेंगे, ज्ञान ही वो पूंजी है जिसे कोई चुरा नही सकता न मिटा सकता है इसके द्वारा आप किसी भी शिखर तक पहुच सकतें हैं।
आज के समय में आप किसी भी चिकित्सक, कर्मचारी सेवाभावी से मिलते हैं उनके सफल होने के पीछे गुरु का ही हाथ होता है और गुरु के कारण आज वो इस संसार में लोगो की मदद कर पा रहें है और अपनी आवश्यकता की पूर्ति कर पा रहे हैं।
गुरु के लिए श्लोक
गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु गुरुर्देवो महेश्वरा गुरुर्साक्षात परब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः
जिसका अर्थ है कि गुरु ही ब्रह्म है जो सृष्टि के रचियता हैं। गुरु ही श्रष्टि के पालक हैं जैसे कि श्री विष्णु जी। गुरु ही इस श्रष्टि के संहारक भी हैं जैसे श्री शिव। गुरु साक्षात पूर्ण ब्रह्म हैं जिनको अभिवादन है भाव है ईश्वर तुल्य ऐसे गुरु को मैं नमस्कार करता हूँ।
कुछ और महत्वपूर्ण लेख –
- सम्राट अशोक के गुरु का क्या नाम था?
- महात्मा गांधी के राजनीतिक गुरु कौन थे?
- निंदा करने वाले को क्या कहते हैं?
- बाबा रामदेव जी के कितने पुत्र थे?
जहांगीर के कितने पुत्र थे
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- श्री सम्प्रदाय
- श्री रामानुजाचार्य
- श्री गुरु महाराज
- श्री गुरुजी
- श्री गुरु माता जी
- श्री गुरु महाराज की समाधि
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गुरु का महत्व
गुरु के महत्व पर संत शिरोमणि तुलसीदास ने रामचरितमानस में लिखा है –
गुर बिनु भवनिधि तरइ न कोई। जों बिरंचि संकर सम होई।।
भले ही कोई ब्रह्मा, शंकर के समान क्यों न हो, वह गुरु के बिना भव सागर पार नहीं कर सकता। धरती के आरंभ से ही गुरु की अनिवार्यता पर प्रकाश डाला गया है। वेदों, उपनिषदों, पुराणों, रामायण, गीता, गुरुग्रन्थ साहिब आदि सभी धर्मग्रन्थों एवं सभी महान संतों द्वारा गुरु की महिमा का गुणगान किया गया है। गुरु और भगवान में कोई अन्तर नहीं है। संत शिरोमणि तुलसीदास जी रामचरितमानस में लिखते हैं –
बंदउँ गुरु पद कंज कृपा सिंधु नररूप हरि। महामोह तम पुंज जासु बचन रबिकर निकर।।
अर्थात् गुरू मनुष्य रूप में नारायण ही हैं। मैं उनके चरण कमलों की वन्दना करता हूँ। जैसे सूर्य के निकलने पर अन्धेरा नष्ट हो जाता है, वैसे ही उनके वचनों से मोहरूपी अन्धकार का नाश हो जाता है।
किसी भी प्रकार की विद्या हो अथवा ज्ञान हो, उसे किसी दक्ष गुरु से ही सीखना चाहिए। जप, तप, यज्ञ, दान आदि में भी गुरु का दिशा निर्देशन जरूरी है कि इनकी विधि क्या है? अविधिपूर्वक किए गए सभी शुभ कर्म भी व्यर्थ ही सिद्ध होते हैं जिनका कोई उचित फल नहीं मिलता। स्वयं की अहंकार की दृष्टि से किए गए सभी उत्तम माने जाने वाले कर्म भी मनुष्य के पतन का कारण बन जाते हैं। भौतिकवाद में भी गुरू की आवश्यकता होती है।
सबसे बड़ा तीर्थ तो गुरुदेव ही हैं जिनकी कृपा से फल अनायास ही प्राप्त हो जाते हैं। गुरुदेव का निवास स्थान शिष्य के लिए तीर्थ स्थल है। उनका चरणामृत ही गंगा जल है। वह मोक्ष प्रदान करने वाला है। गुरु से इन सबका फल अनायास ही मिल जाता है। ऐसी गुरु की महिमा है।
तीरथ गए तो एक फल, संत मिले फल चार। सद्गुरु मिले तो अनन्त फल, कहे कबीर विचार।।
मनुष्य का अज्ञान यही है कि उसने भौतिक जगत को ही परम सत्य मान लिया है और उसके मूल कारण चेतन को भुला दिया है जबकि सृष्टि की समस्त क्रियाओं का मूल चेतन शक्ति ही है। चेतन मूल तत्व को न मान कर जड़ शक्ति को ही सब कुछ मान लेनाअज्ञानता है। इस अज्ञान का नाश कर परमात्मा का ज्ञान कराने वाले गुरू ही होते हैं।
किसी गुरु से ज्ञान प्राप्त करने के लिए प्रथम आवश्यकता समर्पण की होती है। समर्पण भाव से ही गुरु का प्रसाद शिष्य को मिलता है। शिष्य को अपना सर्वस्व श्री गुरु देव के चरणों में समर्पित कर देना चाहिए। इसी संदर्भ में यह उल्लेख किया गया है कि यह तन विष की बेलरी, और गुरू अमृत की खान, शीश दियां जो गुरू मिले तो भी सस्ता जान।
गुरु ज्ञान गुरु से भी अधिक महत्वपूर्ण है। प्राय: शिष्य गुरु को मानते हैं पर उनके संदेशों को नहीं मानते। इसी कारण उनके जीवन में और समाज में अशांति बनी रहती है।
गुरु के वचनों पर शंका करना शिष्यत्व पर कलंक है। जिस दिन शिष्य ने गुरु को मानना शुरू किया उसी दिन से उसका उत्थान शुरू शुरू हो जाता है और जिस दिन से शिष्य ने गुरु के प्रति शंका करनी शुरू की, उसी दिन से शिष्य का पतन शुरू हो जाता है।
सद्गुरु एक ऐसी शक्ति है जो शिष्य की सभी प्रकार के ताप-शाप से रक्षा करती है। शरणा गत शिष्य के दैहिक, दैविक, भौतिक कष्टों को दूर करने एवं उसे बैकुंठ धाम में पहुंचाने का दायित्व गुरु का होता है।
आनन्द अनुभूति का विषय है। बाहर की वस्तुएँ सुख दे सकती हैं किन्तु इससे मानसिक शांति नहीं मिल सकती। शांति के लिए गुरु चरणों में आत्म समर्पण परम आवश्यक है। सदैव गुरुदेव का ध्यान करने से जीव नारायण स्वरूप हो जाता है। वह कहीं भी रहता हो, फिर भी मुक्त ही है। ब्रह्म निराकार है। इसलिए उसका ध्यान करना कठिन है। ऐसी स्थिति में सदैव गुरुदेव का ही ध्यान करते रहना चाहिए। गुरुदेव नारायण स्वरूप हैं। इसलिए गुरु का नित्य ध्यान करते रहने से जीव नारायणमय हो जाता है।
भगवान श्रीकृष्ण ने गुरु रूप में शिष्य अर्जुन को यही संदेश दिया था –
सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज। अहं त्वा सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्याि माम शुच: ।। (गीता 18/66)
अर्थात् सभी साधनों को छोड़कर केवल नारायण स्वरूप गुरु की शरणगत हो जाना चाहिए। वे उसके सभी पापों का नाश कर देंगे। शोक नहीं करना चाहिए। जिनके दर्शन मात्र से मन प्रसन्न होता है, अपने आप धैर्य और शांति आ जाती हैं, वे परम गुरु हैं। जिनकी रग-रग में ब्रह्म का तेज व्याप्त है, जिनका मुख मण्डल तेजोमय हो चुका है, उनके मुख मण्डल से ऐसी आभा निकलती है कि जो भी उनके समीप जाता है वह उस तेज से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकता। उस गुरु के शरीर से निकलती वे अदृश्य किरणें समीपवर्ती मनुष्यों को ही नहीं अपितु पशु पक्षियों को भी आनन्दित एवं मोहित कर देती है। उनके दर्शन मात्र से ही मन में बड़ी प्रसनन्ता व शांति का अनुभव होता है। मन की संपूर्ण उद्विग्नता समाप्त हो जाती है। ऐसे परम गुरु को ही गुरु बनाना चाहिए। हमारे बैकुंठवासी श्रीमज्जगद्गुरु रामानुजाचार्य स्वामी सुदर्शनाचार्य जी महाराज में परम गुरु के सभी गुण मौजूद थे और वर्तमान पीठाधीश्वर श्रीमज्जगद्गुरु रामानुचार्य स्वामी पुरूषोत्तमाचार्य जी महाराज में भी वे सभी गुण प्रत्यत्क्ष दिखाई देते हैं।
नारायण नारायण नारायण
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Guru Ka Mahatva. गुरु बिना गत नहीं। गुरूओं की कमी नहीं
Guru Ka Mahatva: गुरु की आवश्यकता, गुरु का महत्त्व, मानव जीवन में गुरु का स्थान, गुरु और शिष्य का पारस्परिक सम्बंध, कौन गुरु कौन चेला? असली गुरु कौन है? जीवन में गुरु का महत्त्व, शास्त्रों में गुरु का महत्त्व का बखान कैसा किया गया है चलिए जानते हैं गुरु कैसा करें हमें जीवन में कैसा गुरु करना चाहिए कैसा नहीं आदि तमाम जानकारी इस आर्टिकल में आप पढ़ने वाले हैं इस सत्संग आर्टिकल को पूरा पढ़ें चलिए शुरू करते हैं।
Table of Contents
Guru Ka Mahatva समुचित विकास
जीवन में जितनी प्रमुखता गुरु की है उतनी ही प्रमुखता जनता के लिये राजा की है। जीवन का समुचित विकास गुरु की छत्र छाया में होता है तो राज्य का विकास और विस्तार राजा करता है। गुरु की छत्र छाया में शिष्य निश्चिन्त होकर रहता है। प्रजा भी योग्य राजा की छत्र छाया में सुखी रहती है।
आज हमने आधुनिकता की ओट में गुरु की महत्ता (Guru Ka Mahatva) को भुला दिया। न तो स्वार्थ में ही गुरु की महत्ता रही और न तो परमार्थ में ही रही शाह अथवा राजा की बात तो अब कोई प्रश्न ही नहीं है क्योंकि प्रजातंत्र है प्रजा अपनी जिम्मेदार स्वयं है। वह अगर यह सोचे कि हमारी रक्षा का भार किसी और के उपर है तो यह उसकी महान भूल है।
गुरु की आवश्यकता सबसे महान
गुरू की महत्ता (Guru Ka Mahatva) तो जीवन के साथ प्रारम्भ हो जाती है। एक बच्चा जो कुछ पहले सीखता है अपनी माँ से, फिर पिता से उसके बाद परिवार के अन्य सदस्यों से। अवस्था के साथ ही साथ उसे फिर और भी कई प्रकार के गुरूओं की आवश्यकता पड़ती है। वह विद्या गुरु हो, शिक्षा गुरु हो कला सिखाता या और भी जो कुछ सिखाता हो लेकिन गुरु की आवश्यकता तो है ही। सबसे महान होता है परमार्थ का। परमार्थ, यानी, पूजा, पाठ, जय तप आदि भी बिना गुरु के बेकार है।
कबीर साहब कहते हैं:
गुरू बिना माला फेरते, गुरु बिन देते दान, गुरूबिन दान हराम है, जा पूछो वेद पुरान।
Guru Ka Mahatva गुरु के बगैर कोई भी सद्गति नहीं
गोस्वामी जी महाराज ने रामायण में साफ लिखा है “गुरूबिना भव निधि तैर न कोई” अर्थात गुरु के बगैर कोई भी सद्गति को नहीं पा सकता। जब-जब धम कर्म पाखन्ड बन जाते है तब यही समझना चाहिए कि गुरु की महत्ता समाप्त हा गई या गुरु मिला भी तो वह ठीक नहीं है।
दुनिया में भी हम यदि किसी के गलत निदेशों को मान लेते हैं तो जीवन का रास्ता गलत हो जाता है। परमार्थ में भी यहा बात है। यदि गुरु सच्चान मिला तो परलोक की सारी क्रियायें झठी हो जाता है हमने गुरु को समझा नहीं, जाना नहीं, केवल रस्म रिवाज के नाते गुरु धारण कर लिया तो क्या बनता है।
उसके लिय कहा है:
अधा गुरु बहरा चेला, होय नरक में ठेलम ठेला। फिर गति कहा हुई, तो द्गति ही हुई …
इसीलिये कहा जाता है
“गुरू करो जान कर पानी पियो छान कर”
वह गुरु कैसा हो जिसकी वंदना वेद शास्त्र प्राण, देवी देवता औतारी शक्तियाँ सभी कर रहे हैं। वह गुरु कैसा हो जिसके लिये कहा गया है:
गुरू: ब्रह्मा, गुरू: देवो महेश्वर: गुरू: साक्षात पारब्रह्म, तस्मै श्रीगुरूवे नमः
ऐसा गुरु कौन हो सकता है? क्या वह एक इन्सान मात्र होगा नहीं इसका जबाव गुरु वाणी में बड़ा ही स्पष्ट है।
“मेरो भरता बड़ा विवेकी, आपे संत कहावे”
गुरु के बिना गत नहीं
ऐसे गुरु के बिना गत नहीं हो सकती। आज गुरूओं की कमी नहीं है किन्तु ऐसे गुरु कम हैं। इसीलिये आज एक धर्म आ गया जिसे गोस्वामी जी ने ‘तामसधर्म’ कह कर बयान किया है। जब तामस धर्म का प्रचार होता है तब प्राकृतिक कोप भी हआ करते हैं। इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है।
यदि दुनिया में सफलता प्राप्त करनी है तो गुरूओं की महत्ता (Guru Ka Mahatva) जीवन में लाना है। गुरु की महत्ता आएगी तो समाज में छात्र आंदोलन समाप्त हो जाएगा घरों में परिवारों में आपसी वैमनस्यता समाप्त हो जाएगी। न माता पिता को बच्चों से शिकायत होगी न अध्यापक को छात्रों से।
अध्यापक अपनी जिम्मेदारियों को निभाएँ, छात्रों में गुरु के लिये सम्मान की भावना का उदय हो। सामाजिक व्यवस्था ठीक हो जायेगी तब आध्यात्मिक उन्नति सम्भव होगी। हम गुरु की, सतगुरू की महिमा समझ सकगें तभी आत्मा की गति होगी। तामस धर्म समाप्त होगा। सत्य धर्म आ जाएगा सब धर्म वाले एक नारा लगाएंगे। वह नारा होगा जय गुरूदेव’।
READ:- आने वाले भविष्य में क्या होगा? Bhavishya Mein भारत भूमि पर होगा
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Balbodi Ramtoriya
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